रविवार, 30 नवंबर 2008

रावत सारस्वत साहित्य पुरस्कार-२००८ के लिए प्रविष्ठियां आमंत्रित


रावत सारस्वत साहित्य पुरस्कार-२००८ के लिए प्रविष्ठियां आमंत्रित


संक्षिप्त नियम-शर्तें


राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम साहित्यकार स्व. रावत सारस्वत के नाम पर स्थापित पुरस्कार के संदर्भ में सूचित करते हुए परम हर्ष हो रहा है कि -
रावत सारस्वत साहित्य पुरस्कार-२००८ हेतु प्रविष्ठियां आमंत्रित हैं।
राजस्थान निवासी कोई भी लेखक अपनी किसी एक राजस्थानी पुस्तक को पुरस्कार प्रविष्ठि के रूप में भिजवा सकता है। राजस्थान निवासी से अभिप्राय राजस्थान में जन्म लेने वाला या विगत दस वर्षों से लगातार राजस्थान में निवास करने वाला अभिप्रेत है।
पुस्तक वर्ष २००३, २००४, २००५, २००६, २००७ में छपी होनी चाहिए।
पुस्तक कम से कम ८० पृष्ठ की डिमाई साइज में होनी चाहिए।
पुस्तक किसी भी विधा में हो सकती है।
प्रविष्ठि रूप पुस्तक की पांच प्रतियां प्रेषित करनी होगी। (तीन पुस्तकें तीन निर्णायकों के लिए एक-एक, एक पुस्तक स्व. रावत सारस्वत के सुपुत्र सुधीर सारस्वत के लिए व एक पुस्तक संस्थान के लिए आवश्यक होगी।)
पूर्व वर्षों में पुरस्कार हेतु भेजी गई पुस्तक इस वर्ष पुन: शामिल नहीं हो सकेगी।
लेखक को अपने दो पासफोर्ट साइज फोटो के साथ अपना जीवन परिचय व पुरस्कार नियमांे की मान्यता की सूचना भी प्रेषित करनी होगी। (घोषणा प्रारूप नीचे प्रकाशित है।)
प्राप्त प्रविष्ठियों का मूल्यांकन समिति द्वारा मूल्यांकन करवाकर सर्वश्रेष्ठ घोषित किसी एक कृति पर पुरस्कार दिया जाएगा।
मूल्यांकन समिति में तीन अलग-अलग नगरों के राजस्थानी भाषाविद सदस्य होंगे। जिनसे अलग-अलग मूल्यांकन अंकों के आधार पर करवाया जाएगा और कुल योग के अंकों की अधिकता ही श्रेष्ठता का मापदण्ड होगा।
निर्णय पूर्णतया निष्पक्ष होगा और तीनों निर्णायकों को भी निर्णय होने तक एक-दूसरे के विषय में पता नहीं होगा।
निर्णायकों के पास विषय प्रतिपादन अभिव्यक्ति शिल्प व भाषा शैली के चार भाग २५-२५ अंक के मानकर कुल १०० अंकों का प्रपत्र, प्राप्त पुस्तकों की एक-एक प्रतियों के साथ भिजवाया जाएगा। पुस्तकें निर्णायकों को वापस नहीं करनी होगी व निर्णय पत्रक भरकर भेजना होगा। इस ढंग से तीनों निर्णायकों से प्राप्त पत्रक से अंक जोड़े जाएगें व कुल ३०० अंकों के योग का अंतिम निर्णय पत्रक तैयार किया जाएगा। कुल योग में सर्वाधिक अंक प्राप्त कृति के नाम पुरस्कार घोषित किया जाएगा।
मान-सम्मान के अलावा पुरस्कार की राशि ५१०० रु. नगद होगी।
राशि ५१०० रुपये से ज्यादा की राशि का कोई भी दुसरा पुरस्कार प्राप्त कर चुकी पुस्तक इस पुरस्कार हेतु शामिल नहीं हो सकेगी।
यह पुरस्कार वर्ष २००६ से रावत सारस्वत के सुपुत्र श्री सुधीर सारस्वत के सौजन्य से प्रतिवर्ष दिया जाएगा। जिसकी संयोजकीय भूमिका रावत सारस्वत स्मृति संस्थान, चूरू निभाएगा।
पुरस्कार की प्रविष्ठियां २५ दिसम्बर, २००८ तक दुलाराम सहारण, सचिव, रावत सारस्वत स्मृति संस्थान, गांधीनगर, पो. चूरू - ३३१ ००१ के पते पर पहुंच जानी चाहिए। अधिक जानकारी के लिए मो. नं. ९४१४३ २७७३४ पर सम्पर्क किया जा सकता है।
संस्थान द्वारा घोषित अंतिम निर्णय सभी प्रतिभागियों को मान्य होगा। इस विषय में कोई भी वाद स्वीकार्य नहीं होगा।
सादर।

(भंवरसिंह सामौर) (दुलाराम सहारण)
अध्यक्ष सचिव


नैम-मानता घोसणा

सेवा मांय,


अध्यक्ष/सचिव
रावत सारस्वत स्मृति संस्थान
चूरू-३३१००१


विसै : 'रावत सारस्वत साहित्य पुरस्कार-२००८' सारू प्रविष्ठि भेळी करण अर नैम मानता री हामळ बाबत।


मानजोग,


म्हैं---------------------निवासी ........................................... म्हारी पोथी ................................... री पांच पड़तां, म्हारो परिचै अर दो फोटूवां साथै ''रावत सारस्वत साहित्य पुरस्कार-२००८'; री प्रविष्ठि सारू भिजवावूं हूं।
म्हैं घोसणा करूं हूं कै आ' पोथी म्हारी मौलिक है अर इण माथै कोई दूजो ५१०० रिपियां सूं बेसी रो इनाम कोनी मिल्यो थको।
संस्थान रा नैम-कायदा देख लिन्हां अर म्हैं उणां नै मानण री घोसणां करूं। म्हनैं संस्थान रो छेकड़लो निर्णय मंजूर होसी।


तारीख :

दस्तखत :

नांव अर पूरो ठिकाणो :
फोन/मोबाइल नं :

Read more...

शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

हनवंतसिंघ राजपुरोहित रा ई-टपाळ अजय रै नाम........

प्रिय अजय,
आज गुगल मांय सर्च करता थांरौ ब्लोग मिळ्यौ, बांच'र मन घणौ राजी होयो.
म्हें ईं लारला घणां दिनां सूं राजस्थांनी भासा रै वास्तै किं करण री कोशीश कर रह्‌यौ हूं. राजस्थांन सूं दुर मुंबई अर लंदन मांय हुवण सूं म्हें कोई खास नीं कर सक रह्‌यौ हूं.
आशा है आप म्हारै टच मांय रह्‌वौला अर आपां साथ मिळनै सैयौग सूं काम करांला.
म्हारी वेबसाईट : www.marwad.org
आपरौ,

हनवंतसिंघ राजपुरोहित
मरूवाणी संघ
Mobile (India) 0091 98696 07933
Mobile (London) 0044 7965044556
ई-टपाळ hanvant@marwad.com
Web www.marwad.org
-------------------------------------------------------------------------------------------------
मुजरौ सा!

आपरौ ई-टपाळ बांच'र लागौ, कै लारला १०-१२ बरसां री म्हारी शोध पुरी व्ही. म्हें कोई एड़ौ मिनख ढुंढ रह्‌यौ हौ जिणरा विचार म्हां सूं मिळै. आपसूं अर राजेंद्रजी सूं बात करनै लागौ कै म्हारी शोध पुरी व्हेगी.

1947 सूं पैली राजपुतानौ अंगरेजां रै गुलाम नीं हौ (अजमेर नै छोड़'र), अर अंगरेजां रै गया पछै 1947 मांय राजपुतानै रौ विलय हुयौ. उण विलय रै साथै आपणी गुलामी ईं चालु होगी. आपणी भासा बोलण रौ हक अर इधकार खतम होग्यौ.

आज भारत सरकार रै सांमै कड़क जवाब देवणवाळौ अर गुजर समाज ज्यूं आंदोलण करण वाळा चावै. लारला 60 बरसां मांय आपणौ आंदोलण सरकार री मनवार करण में ईं लाग्यौ रह‌यौ. आंपा कोई भीख नीं मांग रह्‌या हौ, आंपा आपणै हक री बात कर रह्‌या हौ. सिधी आंगळी सूं कदै ई घी नीं निकळ्या करै.

आज सरकार आपणी आवाज सूण भी लेवै तौ राजस्थांनी नै राजस्थांन री दूजी राजभासा बणा'र छोड देवैला. जिणसूं शिक्षा अर कांम काज मांय तौ राजस्थानी चालण सूं रह्‌यी. सांवैधानिक मान्यता इज एक रस्तौ नीं है, राजस्थांन रै हर सरकारी काम-काज, ST बसां मांय, रेल्वे स्टेशनां पर अर हर एक दुकान रा बोर्ड राजस्थांनी भासा मांय हुवणा चावै.

लारला 60 बरसां मांय आपणी भासा रौ घणौ नुकसाण हुयौ है, हिंदी राजस्थांन री मुख्य भासा हुवण सूं राज्स्थांनी भासा मांय नुंवा सबदां रौ जलम नीं व्हे सक्यौ. साथै-साथै हिंदी भासा रा घणां सबद राजस्थांनी भासा मांय घुस जावण सूं आ हिंदी री बोली लागण लागी.

म्हारौ अर मरुवाणी संघ रौ पुरौ-पुरौ सैयोग मायड़ भासा वास्तै है, म्हें बेगौ ईं राजस्थांन आवण रौ plan बणावूंला.

जै राजस्थांन!
जै राजस्थांनी!

आपरौ,
हनवंतसिंघ राजपुरोहित
-------------------------------------------------------------------------------------------------

राजवाड़ी राजस्थांन (Royal Rajasthan)
मायड़भासा, अर राजस्थांन रा साचा हेताळु (True lover of state, language and culture)

बीकानेर रा महाराजा गंगासिंघजी राज री नौकरी मांय पैल हमेशां देसी लोगां री राखता. नौकरी सारु टाळती बगत महाजन राजा हरिसिंघजी गंगासिंघजी री कांनी सूं इन्टरव्यू मांय बैठता अर उमेदवार नै औ दूहौ बांचण सारु केह्ता -

पळळ पळळ पावस पड़ै, खळळ खळळ नद खाळ ।

भळळ भळळ बीजळ भळै, वाह रे वाह बरसाळ ॥

इण दूहै नै बोलतां राजस्थांन सूं बारला मिनख 'खलल खलल' करण लागता. तद वांनै जावाब दिरीजतौ - "अठै रा लोग-बाग फगत राजस्थानी जाणै अर समझै अर म्हांनै वां सूं ईं काम पड़ै. इण वास्तै राजस्थानी रा जाणकार लोगां नै ईं इण राज मांय नौकरी मिळसी, दूजां नै नीं."

Join us now to protect our mother tongue, download and send this form to us :


आपरौ,

MARUWANI SANGH

0091 98696 07933

+ hanvant@marwad.com

Web www.marwad.org

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

राजस्थांनीयां नै ऒळख रौ हेलौ

जे आप राजस्थांनी हौ तौ मायड़ भासा राजस्थांनी सूं हेत राखौ

आज आपां जिकौ किं हां उण होवण रै लारै अठै री जमीन, अठै री संस्क्रती-संस्कार अर अठै रौ इतियास है. इण सैं चिजां सूं मिनख नै जिकौ जोड़ै वा है मायड़ भासा, आपणी भासा.

कांई थे जाणौ हौ ?

राजस्थांनी भासा कुळ चवदै बोलियां सूं बणी है. जिंयां मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाड़ौती, ढुंढाड़ी, गोड़वाड़ी, गुजरी, मेवाती इत्याद. घणी बोलियां भासा रै सिमरिध होवण री प्रतीक है.

आजादी सूं पैली 'डिंगल' रै रुप में ૫૪૪ रजवाड़ा मांय आ बिल्कुल समान ही. आजादी रै पछै शिक्षा रौ माध्यम राजस्थांनी नीं व्हिया सूं इण नै बाचण अर लिखण रा अभ्यस्त नीं व्है सकिया. पण एकर अभ्यास सरु करियां पछै आ सब सूं सरळ अर मोवणी लागै. राजस्थांन रा सारा गांवां मांय आ इज बोलीजै.

राजस्थांनी भारतीय भासावां मांय तीजी अर संसार री भासावां मांय नवमी जगां राखै. केन्द्रिय साहित्य अकादमी जिण २२ भासावां नै मांनता दे राखी है, उण मांय राजस्थांनी ईं सांमळ है, पण सांवैधानीक मांनता नीं मिलण सूं प्रशासनिक अर राजकाज रै कांमा मांय अर भारत सरकार रै नोटां माथै आ नीं छप सकी.

राजस्थांनी भासा सूं निकळ्यौड़ी गुजराती भासा संसार री दसमी सबसूं म्होठी बोली जावण वाळी भासा है.

राजस्थांनी भासा मांय एक लाख सूं बेसी हस्तलिखित ग्रंथ बिखरियोड़ा पड्या है. अबार तांई ढाई लाख सबदां रौ विशाळ राजस्थांनी सबद कोस, अंस्सीहजार राजस्थांनी केहवतां अर मुहावरां रा केई छोटा-म्होठा कोश निकळ चुकिया है.

राजस्थांन भारत रौ सबसूं बड़ौ राज्य है अर राजस्थांनी भारत रै सबसूं बड़ा भाग मांय बोली जावण वाळी भासा है.

राजस्थांन, हरियाणा, मध्यप्रदेश (माळवा), उत्तर गुजरात केई भाग, पाकिस्तान (सिंध अर पंजाब रा घणकरा भाग), कश्मिर (गुजरी), अपगांनिस्थांन (गुजरी), चेकोस्लाविया (गुजरी), इरान-ईराक (गुजरी), चीन (गुजरी), तजाकिस्तान (गुजरी) अर केई दखिण एशिया रै देशां री (गुजरी) राजस्थांनी मायड़भासा है.

अंगरेजी राज मांय कश्मिर अर अपगानिस्थांन री गुजरी भासा नै राजस्थांनी भासा रै रुप मांय जणगनणा मांय देखावता पण राजस्थांनी नै मान्यता नीं हुवण सूं इणनै हिंदी री बोली रै रुप मांय प्रस्तुत करै है.

भारत सरकार नै डर है कै संसार री इत्ती बड़ी भासा नै मान्यता दे दी जावै तौ हिंदी भासा रा जे झुठा आंकड़ा पेश करै है अर हिंदी नै विश्व री तिजी सबसूं बड़ी बोली बतावै है वा बात झुटी पड़ जावै. इण कारण राजस्थांनी नै हिंदी री बोली बता'र हिंदी रौ विस्तार बतावणी चावै.

Join us now to protect our mother tongue, download and send this form to us :


आपरौ,

MARUWANI SANGH

0091 98696 07933, 0044 ७९६५०४४५५६

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

अजय,
Thanks for email. काल आपरै पापा अर राजेन्द्रजी सूं बात करनै मन घणौ राजी हुयौ. आपरी जाणकारी रै वास्तै म्हें मरुवाणी संघ अर प्रताप सेना रौ अध्यक्ष हूं.
मरुवाणी संघ री थापना म्हें कोलेज रा दोस्तां नै साथै लेय'र सन ੧੯੯੯ मांय करी ही. जिणरौ उद्देश्य राजस्थांनी भासा नै राजस्थांन री प्रथम अर एकमात्र राजभासा बणावण री ही. म्हारौ मानणौ है, कै UP, बिहार वाळा री भासा हिंदी नै कोई हक कोनी कै राजस्थांन मांय जबरदस्ती रौ हक जमावै. आज मरुवाणी संघ रै सदस्यां मांय चार्टर्ड अकांउन्टंट सूं लेय'र छोटा-मोटा वौपारी है तौ इण मांय मुंबई सूं गुवाहाटी तांई रौ मानखौ ईं है.
प्रताप सेना री थापना ईं राजस्थांन अर राजस्थांनीयां मांय जाग्रती जगा'र एक राजनैतिक पार्टी बणावण री है. कांम मांय अळुझण अर राजस्थांन सूं दुर रह्‌वण रै कारण हालतांई कोई खास कांम नी कर सक्या हां.
आशा है आपा साथै मिळ'र राजस्थान अर राजस्थानी रै हक री जंग नै इणरै सिरै तांई लेय जावांला.
आपरौ,
हनवंतसिंघ राजपुरोहित
रूवाणी संघ

Mobile (India) 0091 98696 07933,
Mobile (London) 0044 7965044556

ई-टपाळ hanvant@marwad.com

Read more...

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

क्रांतिकारी कवि शंकरदान सामौर (जयंती विशेष)

क्रांतिकारी कवि शंकरदान सामौर
जयंती विशेष (२२ नवम्बर)

'सगळां रा सिरमौड़, ओळखीजै ठौड़-ठौड़' विरुद से विख्यात कवि शंकरदान सामौर को कौन नहीं जानता। वे आधुनिक युग के बड़े और क्रान्तिकारी कवि थे। आपका जन्म २२ नवम्बर १८२४ को चुरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के बोबासर गांव में हुआ। आप राजस्थानी के पहले ऐसे राष्ट्रीय कवि हैं, जिनका काव्य देशभक्ति के भावों से ओतप्रोत है। आपके काव्य में अंग्रेजों के विरोध में लड़ने वालों के लिए सम्मान का सुर बहुत ऊंचा है। इस क्रांतिकारी कवि की जोश भरी वाणी ने फिरंगियों को झकझोर कर रख दिया था। ये अपने जीवन काल में इतने विख्यात हुए कि उनके डिंगल गीतों को लोगों ने लोकगीतों की तरह अपनाया। उनके गीत देशभक्तों के सच्चे मित्र हैं तो वहीं देश-द्रोहियों और दुश्मनों पर बंदूक की गोली की तरह वार करते हैं।

'संकरियै सामौर रा, गोळी हंदा गीत।
मिंत'ज साचा मुलक रा, रिपुवां उळटी रीत।।'

ऐसे क्रांतिकारी कवि की बहुत सी रचनाएं आज भी नौजवानों में जोश भरने का काम करती हैं। 'सगती सुजस', 'वगत वायरो', 'देस-दरपण' और 'साकेत सतक' आपकी प्रसिठ्ठ रचनाएं हैं।
आचरणवान कवि होने के कारण वे नमन करने योग्य तो थे ही और सत्य कहने की हिम्मत के कारण पूजनीय भी थे। अन्य कवियों की तरह उन्होंने राजाओं का महिमागान नहीं किया। अंग्रेजों का साथ देने वाले राजाओं को उन्होंने खरी-खरी सुनाई। बीकानेर महाराजा को तो फटकार लगाते हुए उन्होंने यहां तक कह डाला कि-

'डफ राजा डफ मुसद्दी, डफ ही देस दिवांण।
डफ ही डफ भेळा हुया, (जद) बाज्यो डफ बीकांण।।'

कविरूप में सामौर ने देश पर आए अंग्रेजी संकट से समाज को सावचेत किया, तो युग-चारण के रूप में इस संकट से समाज का ख्याल रखने में भी पीछे नहीं रहे। जब जरूरत पड़ी तब उन्होंने तागा, धागा, तेलिया और धरणा जैसे सत्याग्रह भी किए। शंकरदान सामौर सामन्ती व्यवस्था की अनीति के खिलाफ भी तीन बार धरने में शामिल हुए। क्योंकि अपनी मौत से नहीं डरने वाला यह जनकवि अनीति का हर स्तर पर विरोध करने को ही जीवन का धर्म मानता था-

'मरस्यां तो मोटै मतै, सो जग कैसी सपूत।
जीस्यां तो देस्यां जरू, जुलम्यां रै सिर जूत।।'

आपने संघर्ष के लिए कविता को हथियार बनाया, लोगों में गुलामी से जूझने का सामर्थ्य भरा। सामौर ने देश की कविता को नया अर्थ दिया, नए विचार दिए। वे गौरी सत्ता के विद्रोही और विप्लवी कवि थे। लोगों ने उनको 'सन् सत्तावन रा कवि' कहकर सम्मान दिया। उनकी कविता में अंग्रेजों के खिलाफ राजस्थानी जन के मन का रोष विस्फोट के रूप में प्रकट हुआ। कवि का यह मानना था कि आजादी की इस लड़ाई का अवसर चूक गए तो फिर यह अवसर मिलना बड़ा मुश्किल है-

'आयो अवसर आज प्रजा पख पूरण पाळण।
आयौ अवसर आज गरब गोरां रौ गाळण।'

कवि का यह मानना है कि आजादी सबसे बड़ी नियामत है और उसे बचाए रखना हर नागरिक का कर्त्तव्य। वे अंग्रेजों की नीति को समझ गए थे और इसी कारण उस नीति से देश को बचाने के लिए उन्होंने एकजुट संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया। सूर्यमल्ल मिश्रण और शंकरदान सामौर एक ही समय में जन्म लेने वाले और जीने वाले कवि थे। दोनों ने ही राष्ट्रीयता की भावना को अपनी कविता का आधार बनाया। अंग्रेजों के अत्याचार की नीति का विरोध कर शंकरदान सामौर ने ऊंचे सुर में देश की एकता, जातियों की एकता और धर्मों की एकता की आवाज बुलंद की। संकट काल में सभी तरह के भेदों को दूर करने की जरूरत बताते हुए कवि राजाओं और की बजाय लोक को संघर्ष का आह्वान करता है-

'धरा हिंदवाण री दाब रह्या दगै सूं, प्रगट में लड़्यां ही पार पड़सी।
संकट में एक हुय भेद मेटो सकल, लोक जद जोस सूं जबर लड़सी।।
मिळ मुसळमान रजपूत ओ मरेठा, जाट सिख पंथ छंड जबर जुड़सी।
दौड़सी देस रा दबियोड़ा दाकल कर, मुलक रा मीठा ठग तुरत मुड़सी।।'

उनकी खारी लेकिन खरी आवाज देश के दबे हुए लोगों को ऊपर उठाने के लिए थी। कवि किसान को भी इस युद में साथ लेता है। किसानों का ये साथ उत्पादन का है। आजादी की लड़ाई में किसानों एवं काम करने वाले मजदूरों को साथ लेने का क्रान्ति संदेश इससे पहले राजस्थानी साहित्य में कहीं दिखाई नहीं देता। जैसा कि कवि ने कहा है-

'नवो नित धान करसाण निपजावसी,
तो पावसी फतै हिंदवाण पक्की।।'

कवि यह जान गया था कि सब लोगों के संगठित होने से ही देश को आजाद करवाया जा सकता है। तांत्या टोपे, झांसी की रानी, आउवा के ठाकुर खुशालसिंह और भरतपुर के जाट राजा तो उनकी कविता के विषय बने ही पर उनके साथ सामाजिक चेतना जगाने वाले भाव प्रकट करने में भी उनकी कलम पीछे नहीं रही।
भरतपुर राजा की प्रशंसा में उनका गीत आज भी लोक प्रचलित है-

'गोरा हटजा भरतपुर गढ़ बांको
नहं चलैला किले माथै बस थांको।
मत जाणीजै लड़ै रै छोरो जाटां को
औ तो कंवर लड़ै रै दसरथ जांको।।'

देश की भूख मिटाने वाले किसान और रक्षा करने वाले वीर सैनिक के सम्मान में वह कहता है-

'धिन झंपड़ियां रा धणी, भुज थां भारत भार।
हो थे ही इण मुलक रा, सांचकला सिणगार।।'

इस तरह आजादी की अलख जगाने वाले इस कवि ने अपना सारा जीवन लोगों को क्रांति-संदेश देने में लगाया। अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को अंग्रेजों की स्वार्थ भरी, कुटिल, लूट-खसोट जैसी चालों से सावचेत किया। इस कवि की कविता का केन्द्र कोई गढ़ या गढ़पति नहीं रहा, वह तो अपनी कविता में शोषितों की तरफदारी करता रहा। इनकी रचनाएं आमजन की पीड़ा के दस्तावेज हैं। कवि सामौर ने अपनी इन रचनाओं के माध्यम से देश की दुर्दशा को प्रकट कर अपने कविधर्म को निभाया। १० अप्रैल १८७८ ईस्वी को इस संघर्षशील कवि का देहांत हो गया, मगर उनकी रचनाओं के बल पर उनका यश हमेशा जीवित रहेगा।

प्रस्तुति- अजय कुमार सोनी

Read more...

सोमवार, 17 नवंबर 2008

बटोड़ां में मोर बोलै छै..........................

परलीका गांव में बरसों बाद फिर से मोर दिखने लगे हैं। खेतों में, चौगानों में और बाड़े-बटोड़ों में खेलते-कूदते मोरों का झुंड ग्रामीणों को बरबस ही आकर्षित कर लेता है। मोरों के ये झुंड गांव के वातावरण को सरस बना रहे हैं।

'जनवाणी` के फोटोग्राफर विक्रम गोदारा (गोदारा डिजिटल स्टूडियो) ने ये फोटो खास तौर से खीचा है।

रिपोर्टर- अजय कुमार सोनी (संपादक जनवाणी)

Read more...

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

कविता-कड़बी काटतो, धरग्यो दांती पांथ..................


परलीका में सेठियाजी की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा आयोजित परलीका, १३ नवम्बर
सेठियाजी व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों दृष्टियों से राजस्थानी ही नहीं बल्कि भारतीय साहित्य के गौरव थे। वे निस्संदेह बड़े कवि थे तथा बड़ा कवि कई युगों से कोई एक पैदा होता है। उन्होंने अपनी कविता में राजस्थान का कोई कोना अछूता नहीं छोड़ा। राजस्थान को उन्होंने समग्र रूप में चित्रित किया। वे बेजोड़ कवि थे। सेठिया के रूप में हमने राजस्थान की धरती पर साहित्य की तलवार से लड़ने वाले बहुत बड़े योद्धा को खो दिया है। ये उद्गार बुधवार को हनुमानगढ़ जिले के परलीका गांव में जनकवि कन्हैयालाल सेठिया की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार रामस्वरूप किसान ने व्यक्त किए। ग्राम की साहित्यिक संस्थाओं व राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की राष्ट्रीय सेवा इकाई के संयुक्त तत्वावधान में बालिका विद्यालय के प्रांगण में आयोजित इस सभा में बड़ी संख्या में साहित्यकार, साहित्य-प्रेमी, राजस्थानी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता तथा विद्यार्थी शामिल हुए। इस अवसर पर उपस्थित लोगों ने सेठियाजी के चित्र के समक्ष पुष्प अर्पित किए तथा दो मिनट का मौन रखा। कथाकार मेहरचंद धामू ने कहा कि सेठियाजी ने कविता के माध्यम से राजस्थान की भाषा, संस्कृति, प्रकृति और इतिहास को दुनिया के समक्ष रखा। अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश प्रचार मंत्री विनोद स्वामी ने कहा कि सेठियाजी का राजस्थानी को मान्यता का सपना अधूरा रह गया और इस सपने को पूरा करने में राजस्थान का नौजवान पीछे नहीं रहेगा। इस अवसर पर विद्यार्थी सुभाष स्वामी ने सेठियाजी के दोहे, नीलम चौधरी ने गद्य कविताएं 'गळगचिया`, सुनीता कस्वां ने कविता 'राजस्थानी भाषा`, संज्या बिरट ने 'कुण जमीन रो धणी`, नूतन प्रकाश ने 'जलमभोम`, राजबाला खर्रा ने 'धरती धोरां री` व पूनम बैनीवाल ने 'पातळ`र पीथल` आदि कविताओं का भावपूर्ण वाचन किया। इस अवसर पर कवि किसान ने अपने दोहों के माध्यम से काव्यांजलि दी, 'सायर सुरग सिधारियो, रोया भर-भर बांथ, कविता-कड़बी काटतो, धरग्यो दांती पांथ।` व्याख्याता सत्यनारायण सोनी ने संचालन के दौरान सेठियाजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला तथा उनकी कविताओं के उदाहरण प्रस्तुत किए, 'बुझसी धूणी देह री, अबै हुवै परतीत, पण आभै में गूंजता, रैसी म्हारा गीत।` इस अवसर पर राजस्थानी मोट्यार परिषद् के बीकानेर संभाग उपाध्यक्ष सतपाल खाती, जिला महामंत्री संदीप मईया, सुरेन्द्र बैनीवाल, बुजुर्ग जीतमल बैनीवाल, व्याख्याता जगदीश प्रसाद इंदलिया, राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी पूर्णमल सैनी, बसंत राजस्थानी, हनुमान खोथ व किशनाराम कल्याणी सहित कई वक्ताओं ने विचार रखे। उपस्थित जन-समुदाय ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने का संकल्प लिया।



सेठियाजी की सैकड़ों कविताएं कंठस्थ
सेठियाजी की कविताओं की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि परलीका के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय की बारहवीं कक्षा में अध्ययनरत छात्रा पूनम बैनीवाल को उनकी सैकड़ों कविताएं, गीत और दूहे कंठस्थ हैं। पूनम को राजस्थानी के अन्य कविओं की कविताएं भी बड़ी संख्या मंे कंठस्थ हैं। सेठियाजी की 'पातळ`र पीथळ`, 'धरती धोरां री`, 'राजस्थानी भाषा` जैसी लम्बी कविताएं भी वह बेहिचक व बिना अटके, धाराप्रवाह और ओजपूर्ण में अंदाज में प्रस्तुत करती है।

प्रस्तुति :- अजय कुमार सोनी परलीका मो - ९६०२४-१२१२४, ९४६०१-०२५२१

Read more...

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

पण आभै में गूंजता रैसी म्हारा गीत.....................

पण आभै में गूंजता रैसी म्हारा गीत......





जन-जन रा कवि, सबद रिसी, राजस्थानी माटी रा साचा गायक, महान कवि, पद्मश्री कन्हैया लाल सेठिया नीं रैया। आज तारीख ११ नवंबर २००८ नै दिनूगै करीब ६ बजे कोलकाता में आपरै निवास पर वां छेकड़ली सांस ली। वां रो एक दूहो है :-



''बुझसी धूणी देह री, अबै हुवै प्रतीत।
पण आभै में गूंजता रैसी म्हारा गीत।।"



जद तांई आ धरती रैसी, वां रा गीत गूंजता रैसी। सेठिया जी फगत राजस्थानी रा ई नीं, भारतीय साहित्य रा लूंठा कवि हा। राजस्थानी कविता रै मार्फत राजस्थान री संस्कृति अर प्रकृति री खासियतां दुनिया रै सांमी राखण में कामयाब हुया। सगळां सूं बेसी पढ़ीजण-सुणीजण वाळा कवि हा बै। 'धरती धोरां री', पातळ अर पीथल', 'जलमभोम', 'कुण जमीन रो 'धणी' जिसी कवितावां आज भी लोकगीतां री भांत गायी जावै। राजस्थानी में वां १४ किताबां लिखी जिणमें 'रमणियां रा सोरठा', 'गळगचिया', 'मींझर', 'मायड़ रो हेलो', 'लीकलकोळिया', 'लीलटांस' अर 'हेमाणी' आद खास है। मायड़ भासा राजस्थानी री मानता वास्तै बै आखै जीवण संघर्ष करता रैया। मायड़ भासा रै सम्मान में वां रो दूहो है :-,


''मायड़ भासा बोलतां, जिण नै आवै लाज।
इसै कपूतां सूं दुखी, आखो देस-समाज।।"

हिन्दी, अंग्रेजी अर उर्दू में भी वां री मोकळी पोथ्यां छपी है। सेठिया जी नै सरधांजली देवतां थकां श्री रामस्वरूप किसान कैयौ है,

''आज आपां राजस्थान री धरती पर साहित्य री तलवार सूं लड़ण आळो भोत बड़ो जोधो खो दियो।" किसान जी रो दूहो है :-

''सायर सुरग सिधारियो, रोया भर-भर बांथ।
कविता-कड़बी काटतो, धरग्यो दांती पांथ।।"

जनवाणी परिवार कानीं सूं परलीका में सरधांजली सभा १३ नवंबर नै राखी है। पधारज्यो सा!

Read more...

शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

नेता बैठ्यो ताकड़ी, चमचा घालै बाट...............


काचा रैग्या रोट (रामस्वरूप किसान)



नेता बैठ्यो ताकड़ी, चमचा घालै बाट।
परजा देखै बापड़ी, बां लोगां रा ठाठ।।
तोलो करतब-ताकड़ी, नेतावां नै घाल।
तोलो क्यूं उण ताकड़ी, जिण में तूलै माल।।
नेताजी इक पालड़ै, दूजै सिक्कां-बो`ळ।
मिनख तुल्यो कै मिनखपणो, होगी रोळ-गिदोळ।।
तूल्यो नेता ताकड़ी, सिक्कां कई हजार।
बोझ बतायो मांस रो, नईं गुणां रो भार।।
मन काळो तन ऊजळो, कोनी मूंढै काण।
सिर पर गंठड़ी झूठ री, नेतावां पैचाण।।

मिंदर संग मसीत नैं, लड़ा न आई लाज।
करणो चावै मिनखड़ा! लासां ऊपर राज।।

टूटै सारो देसड़ो, बोट न टूटै एक।
नेतां री इण नीत सूं, सायब राखै टेक।।

मिनख मिनख रै बीच में, मत चिण भाया! भींत।
वोतान खातर बावळा! माड़ी कदे न चींत।।

मिनख बोट नै बोट ले, ओ है एक कळंक।
आछो होवै सौ गुणो, बीं राजा सूं रंक।।

लासां माथै बोट ले, हरख्या नेता जीत।
परजा आंगण पीटणो, बां रै आंगण गीत।।

मत मत दे उण लीडरां, जिणां गई मत मार।
उण हार्यां जग जीतसी, उण जीत्यां जग हार।।

रैयत मांगै रोटड़ी, राजा देत चुणाव।
फूंक तेल द्यै तेलड़ो, कीकर हुवै बचाव।।

आं कारां में बावळा! बळै कमेरो खून।
स्याणो माणस नीं चढै, चढै मारियो पून।।

नेतां लीन्यो फैसलो, गोळ ढाळ नै मेज।
गेरो फूट समाज में, बण ज्याओ अंगरेज।।

कुरसी खातर देस में, नित बाजै है जूत।
आतंक नाचै देस में, दिल्ली नाचै भूत।।

लासां ऊपर गीध ज्यूं, गद्दी ऊपर आज।
पूत लड़ै इण देस रा, कोनी आवै लाज।।

नेता नोचै मांस ने , सेठां काढै खाल।
मरग्यो म्हारो देसड़ो, लुटै मुसाणां माल।।

झटका देख चुणाव रा, देख चुणावां भेस।
लाठी बाजै देस में, लूटण खातर देस।।

परमट बांटै लूट रा, साल पांचवैं लोग।
हाथ जिकै रै लागज्या, बो ही भोगै भोग।।

नेता मांगै बोटड़ा, जोड़-जोड़ नै हाथ।
बोट नईं ऐ लूट रा, परमट मांगै स्यात।।

इबकै-इबकै बेलियो, ओरूं देद्यो बोट।
पांच साल में नईं सिक्या, काचा रै`ग्या रोट।।

नेता मांग्या बोटड़ा, थूक पान री पीक।
म्हूं के कम हूं लूट में, बो के लूटै ठीक।।

लाखूं अठै गरीब घर, गया बाढ में डूब।
नेतावां श्रधान्जली, मदद करैली खूब।।

बै देवै श्रधान्जली, म्हे मांगां इमदाद।
सभा करै बै सोक री, म्हे होवां बरबाद।।

नेता निरखै झ्याज चढ, बाढ डूबिया गांव।
पै`लै पानै आयसी, अखबारां में नांव।।

काढ्यो तेल किसान रो, बाती बण्यो मजूर।
दोनूं बळ दीपावळी, करै अंधारो दूर।।

Read more...

परलीका की प्रतिभा...................

लक्ष्मीनारायण खाती- श्री अमरसिंह खाती के सुपुत्र श्री लक्ष्मीनारायण खाती का केन्द्रीय विद्यालय संगठन के पीजीटी कैमिस्ट्री (व्याख्याता- रसायन विज्ञान) के लिए चयन हुआ है। आपकी नियुक्ति त्रिपुरा राज्य के अगरतला में हुई है। मिलनसार और मृदुभाषी श्री खाती रसायन विज्ञान में एमएससी और बीएड हैं।
जनवाणी परिवार की ओर से हार्दिक बधाई।

Read more...

सोमवार, 3 नवंबर 2008

राजेश चड्ढा की गजले..................

बुल्ले शाह सी यारी रखता हूँ
नानक खुमारी रखता हूं
मीरा के तन मन कृष्ण मैं
सूरत तुम्हारी रखता हूं
अपना फरीदी वेश है
दरवेश दारी रखता हूं
चादर कबीरी जस की तस
खातिर तुम्हारी रखता हूं
ईसा सी माफी दे सकूं
कोसिस ये जारी रखता हूं
------------------------
फिर उनको देखा तो आंखें भरी है
अभी तो पुरानी ही चोटें हरी हैं
हमसे तो लफजों का बयान मुश्किल
तेरा लब हिलाना ही शायरी है
उसने कहा था कि बातें खत्म हैं
जला दो ये जितनी किताबें धरी हैं
किस्सा नहीं है ये इल्म-ओ-अदब
कभी तुमने अपनी हकीकत पढ़ी है।
---------------------------------
राजेश चड्ढा (वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी सूरतगढ) कानाबाती- ९४१४३८१९३९

Read more...

  © Blogger templates The Professional Template by AAPNI BHASHA AAPNI BAAT 2008

Back to TOP