मंगलवार, 19 अगस्त 2008

मनुज देपावत रो गीत- जद झुके शीश

जद झुके शीश नीचा व्हे नेण धरती रो कण कण शर्मावे
वां कायर कीट कपूता री कवि कथा सुनावन ने जावे
अम्बर री आंख्या लाज मरे धरती लजखानी पड़ जावे
जद .......................................................................

भेरी रो रन में नाद हुवे मतवाला खांगा खंकावे
माँ वशुंधरा हित जंग छिड़े वीरा रो जोश उफन आवे
अन्तेर री ज्वाला जग उठी उठे राग राग में बिजली दोड़ पड़े
jhan jhana uthe man ree वीणा अरु आंख्या सू अंगार चिद्दे
पण हार मौत री मंदी देख मतवाला मन में घबरावे
जीवन री चिंता आन पड़े प्राणा रो मोह नही जावे
singha री झपटा jhelniya minki रे dola डर जावे
जद ....................................................................

बे rajmahal रस भोग भवन vebhav vilas में chur adya
jyu manvata री chati पर दानव रा निष्ठुर पैर पद्य

महला में बेठो मौज करे बो राज काज रो रखवालो
रोटी री मांग करे जग में सिने पर सहन करे गोली
ऊँचे महला री चाय में बाण भूखो री दुनिया भोली
ले फौज पुलिस रा बाजीगर ले साधन मोटर ट्राम रेल
आ सदका रो फुटपाथ पर कर रही त्रिघट एक खेल
बो खेल जीके में मानवता कठपुतली बन कर नाच उठे
वे मांस रा बनया पिंड लकड़ी रा घोड़ा बन जावे
सहकर हंटर री मार "मनुज" मुस्कान बिखेरिया खाद्यों रहे
सहकर खूंटे पर खाद्यों रहे पथ पर पत्थर ज्यो पड्यो रहे
बहना री इज्जत लूट दनुज नित अट्टहास करतो जावे
जद .........................................................................

बे घिसी वयवस्था रा प्रेमी बे शोषक सत्ता रा हामी
वे लंबा तिलक लगावानिया है कटीटी रा कोत्ता कमीआमी
सोने चंडी रे टुकडा पर मनवा इज्जत रो मॉल करे
तन रो तंवअन्वे सू टोल करे
मन बिक ज्यावे तन बिक ज्यावे जीवन रो सोरभ लूट जावे
रह जाये मानवी yoni मात्र पण उन् भूखे मन री ब भूख
नही बुझान पावे
जद ................................................................................

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