शनिवार, 16 अगस्त 2008

जय क्रिशन राय तुषार की ग़ज़ल

वो अक्सर फूल परियो की तरह सजकर निकलती है
मगर आँखों में एक दरिया का जल भरकर निकलती है

कंटीली झाडिया उग आती है लोगो के चेहरे पर
खुदा जाने वो केसे भीड़ से बचकर निकलती है

बदलकर शकल हर सूरत उसे रावन ही मिलते है
कोई सीता जब लक्ष्मण रेखा से बहार निकलती है

सफर में तुम उसे ख्मोस गुडिया मत समझ लेना
ज़माने को झुकी नजरो से वो पढ़कर निकलती है

ज़माने भर से उसे इजत की उम्मीद क्या होगी
ख़ुद अपने घर से वो लड़की बहुत डरकर निकलती है

जो बचपन में घरो की जद हिरन सी लाँघ आती थी
वो घर से पूछकर हर रोज दफ्तर निकलती है

ख़ुद जिसकी कोख में इश्वर भी पलकर जन्म लेता है
वाही लड़की ख़ुद अपनी कोख में मरकर निकलती है

छुपा लेती है सुब आँचल में रंजो गम के अफसाने
कोई भी रंग हो मौसम का वो hanskar निकलती है

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फोटो


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परतीकिर्या

प्रिय भाई अजय सोनी,
आप सभी साथी सानंद होंगे
जनवाणी का दूसरा अंक मिला
आभारी हु
ग्रामीण अंचल में इस लघु परयास और partibadhta ka apna mahtav hai badhai!
aapne yad kiya acha laga sabhi sathiyo ko yad kare
aapka
ved vyas
9414054400

आप सभी की परतीकिर्याये आमंत्रित है

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मनुज देपावत रो गीत

धोरा आला देश जाग रे, उन्ठा आला देश जाग
छाती पर पेना पड्या nag रे धोरा आला...........

उठ खोल उनींदी aankharlya, नेना री मीठी नींद तोड़
रे रतअत नही अब दिन उग्यो, सपना रो कूडो मोह छोड़
thari aankhya में naach reya janjal suhani rata र
तू कोट बनावे उन जुनोडे जुग री बोदी बाता र
रे बीत गयो सो गयो बीत, अब उनरी कुड़ी आस छोड़

छाती पर पेना पड्या ............................................

खागा रे लाग्यो आज काट, खूंटी पर टंगिया धनुष तीर
रे लोग मरे भूखा मरता, फोगा में रुलता फिरे वीर
रे utho kisana मजदूर, थे उन्ठा पर कस्ल्यो आज जिन
इ न्फखोर अन्यया ने करदो कोडी रत तिन तिन
फेन किचर कलिए संपा रो तू आज मिटा दे जहर झाग

छाती पर पेना................................................

रे देख मिनख मुरझाय रियो मरने सु मुश्किल है जीनो
ऐ खड़ी हवेल्या हँसे आज पण झुम्पद्ल्या रो दुःख दुनो

ऐ धनाला थारी काया रत भक्षक बनता जावे है
रे जाग खेत रत रुन्खला आ बाद खेत ने खावे है
ऐ जिका उजारे झुम्पद्ल्या उन महला रे लगा आग
छाती पर पेना पड्या नाग ..............................

ऐ इन्कलाब रत अंगारा सिल्गावे दिल री दुखी हाय
पण चांटा छिड़का नही बीउझेली डूंगर lagi aaj lay
ab din aavelo ek isyo dhora ri dharti dhujela
e sada pathra ra sevak ve aaj minakh ne pujela
i sada surange marudhar ra sutora jage aaj bhag
chati par pena padya nag......................................

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राज बिजारनिया का ब्लॉग देखे

http://www.rajbijarnia.blogspot.com

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चंद्र सिंह बिरकाली



नही नदी नाला अठे, नही सरवर सरसाय

एक आसरो बादली, मरू सुकी मत जाई

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परलीका फोटो



गांव में बाढ़ के पानी से घिरा बालिका विद्यालय और सरकारी हस्पताल

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मुक्तक


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परलीका का अदभुत चित्र

परलीका का विहंगम चित्र दिनाक १९ जून २००८

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