शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
मनुज देपावत रो गीत- जद झुके शीश
जद झुके शीश नीचा व्हे नेण धरती रो कण कण शर्मावे
वां कायर कीट कपूता री कवि कथा सुनावन ने जावे
अम्बर री आंख्या लाज मरे धरती लजखानी पड़ जावे
जद .......................................................................
भेरी रो रन में नाद हुवे मतवाला खांगा खंकावे
माँ वशुंधरा हित जंग छिड़े वीरा रो जोश उफन आवे
अन्तेर री ज्वाला जग उठी उठे राग राग में बिजली दोड़ पड़े
jhan jhana uthe man ree वीणा अरु आंख्या सू अंगार चिद्दे
पण हार मौत री मंदी देख मतवाला मन में घबरावे
जीवन री चिंता आन पड़े प्राणा रो मोह नही जावे
singha री झपटा jhelniya minki रे dola डर जावे
जद ....................................................................
बे rajmahal रस भोग भवन vebhav vilas में chur adya
jyu manvata री chati पर दानव रा निष्ठुर पैर पद्य
महला में बेठो मौज करे बो राज काज रो रखवालो
रोटी री मांग करे जग में सिने पर सहन करे गोली
ऊँचे महला री चाय में बाण भूखो री दुनिया भोली
ले फौज पुलिस रा बाजीगर ले साधन मोटर ट्राम रेल
आ सदका रो फुटपाथ पर कर रही त्रिघट एक खेल
बो खेल जीके में मानवता कठपुतली बन कर नाच उठे
वे मांस रा बनया पिंड लकड़ी रा घोड़ा बन जावे
सहकर हंटर री मार "मनुज" मुस्कान बिखेरिया खाद्यों रहे
सहकर खूंटे पर खाद्यों रहे पथ पर पत्थर ज्यो पड्यो रहे
बहना री इज्जत लूट दनुज नित अट्टहास करतो जावे
जद .........................................................................
बे घिसी वयवस्था रा प्रेमी बे शोषक सत्ता रा हामी
वे लंबा तिलक लगावानिया है कटीटी रा कोत्ता कमीआमी
सोने चंडी रे टुकडा पर मनवा इज्जत रो मॉल करे
तन रो तंवअन्वे सू टोल करे
मन बिक ज्यावे तन बिक ज्यावे जीवन रो सोरभ लूट जावे
रह जाये मानवी yoni मात्र पण उन् भूखे मन री ब भूख
नही बुझान पावे
जद ................................................................................
पवन शर्मा की ग़ज़ल
वही शक्लो-सूरत फ़िर वही जबान देना,
दे अगला जन्म तो वतन हिन्दोस्तान देना
तेरी हूरो-जन्नत मुबारक हो तुमको ही,
मुझे वही साथी वही घर मकान देना
ना कर सकें तकसीम कोई बदजात हमको,
मैं करू पूजा तूं फजर की अजान देना
ना मांगू तख्तो-ताज ना कुबेर का खजाना,
दिल में मेरे गीता होठों पे कुरान देना
पवन शर्मा
भादरा
(hanumangarh)
संगराक्षक
जनवाणी के सहयोगी-
१- श्री राजेंद्र कासोटिया,(प्राध्यापक) नोहर
२- श्री हनुमान प्रसाद शर्मा, (व.अध्यापक) परलीका
३- श्री जगदीश गिरी, जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी, श्री गंगानगर
४- श्री दुलाराम सहारण, तारानगर (चुरू)
५- श्री रामदेव जी वर्मा, डिप्टी मेनेजर, पंजाब नेशनल बैंक, सरदार शहर (चुरू)
६- श्री कृषण कुमार बांदर, बाल साहित्यकार, बरवाली (नोहर)
७- श्री इन्द्र सेन धानिया, मेल नर्स, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, फेफाना (नोहर)
८- श्री सतपाल खाती, परलीका (नोहर)
रविवार, 17 अगस्त 2008
राजस्थानी रा मशहुर नारा
शनिवार, 16 अगस्त 2008
जय क्रिशन राय तुषार की ग़ज़ल
वो अक्सर फूल परियो की तरह सजकर निकलती है
मगर आँखों में एक दरिया का जल भरकर निकलती है
कंटीली झाडिया उग आती है लोगो के चेहरे पर
खुदा जाने वो केसे भीड़ से बचकर निकलती है
बदलकर शकल हर सूरत उसे रावन ही मिलते है
कोई सीता जब लक्ष्मण रेखा से बहार निकलती है
सफर में तुम उसे ख्मोस गुडिया मत समझ लेना
ज़माने को झुकी नजरो से वो पढ़कर निकलती है
ज़माने भर से उसे इजत की उम्मीद क्या होगी
ख़ुद अपने घर से वो लड़की बहुत डरकर निकलती है
जो बचपन में घरो की जद हिरन सी लाँघ आती थी
वो घर से पूछकर हर रोज दफ्तर निकलती है
ख़ुद जिसकी कोख में इश्वर भी पलकर जन्म लेता है
वाही लड़की ख़ुद अपनी कोख में मरकर निकलती है
छुपा लेती है सुब आँचल में रंजो गम के अफसाने
कोई भी रंग हो मौसम का वो hanskar निकलती है