सोमवार, 11 मई 2009

मेरी माँ- संजू बिरट


संजू बिरट 12 वीं की छात्रा है। इसकी कविताएं बेहद भावपूर्ण होती हैं। इस कविता में एक श्रमशील मां की क्रियाशीलता बखूबी उजागर हुई है। - संपादक





मेरी माँ

लकड़ी, उपले और चूल्हे को
सूखा रखने के लिए

दौड़
रही है मेरी माँ
इस चक्कर में
भीग गई है
खुद
अन्दर तक।

चूल्हे को ढकने की मशक्कत में
कम पड़ गए हैं बर्तन
इसी बीच याद आई
पशुओं के ठाण में रखी
सड़ी-गली तू़डी
दौड़ती है माँ उसे निकालने को।

तभी टपकने लगता है
सरकण्डे की टूटी-फूटी
छत वाला एक मात्र कमरा
जिसमें बिल्कुल सिमटे हुए
बैठे हैं मेरे छह भाई-बहिन
और मेरे पिता
पर माँ लगी है
छत की मरम्मत में
बिना सीमेंट और कंकरीट के
मात्र बालू से ही कर रही
कोशिश हमारी सुरक्षा की।

तैर गए हैं बरतन
भीग गए हैं गुदड़े
याद आया माँ को
कोने में रखा थोड़ा-सा आटा
उतरती है जल्दी-जल्दी
इसी जल्दी में गिर पड़ती है माँ।

अपनी चोट भूलकर भी
याद है बच्चों का पेट
एक हाथ को बांधे
एक ही हाथ से
गूंथ रही है थोड़ा-सा आटा
तीन इंर्टों को खड़ा करके
बनाया है चूल्हा।

रोटी बनाते-बनाते खो गई
विचारों में
करने लगीं बातें खुद से ही
शायद कर रही है याद
कुछ और जो रह गया है बाहर
इसी बीच जलने लगी रोटी
हाथ से उतारने में जल गई अंगुली
क्योंकि चिमटा जो काफी दिनों से
कर रहा है काम चूल्हे की पाती का।

कम पड़ गई हैं रोटियां
टटोलती है माँ
अस्त-व्यस्त सामान के बीच
आटे की थैली
पर, बिल्कुल खाली है वह
करती है माँ समझौता खुद से ही
भूखी रह लूंगी आज तो क्या
और मैं देखती हूं-
हमारे अगले वक्त की रोटी के लिए
भूखे ही गुजरता है माँ का हर वक्त।

काँपते बच्चों और पति को
ठंड से बचाने में
माँ खुद बच जाती है कथरी ओढ़ने से
रात भर बैठी रहती है
दुबकी एक कोने में
क्योंकि दो खाटों पर तो
जैसे-तैसे पति और बच्चों को सुलाया है माँ ने।

यूं ही बीत जाती है रात
और फिर माँ की वही मशक्कत
ना बाहर की हालत सुधरती है
ना ही माँ की दिनचर्या
सोचती हूं, मुझे सूखा रखने में
कहाँ तक भीगी है माँ
मेरा पेट भरने के लिए
कितनी रातें करवटें बदलते काटी हैं माँ ने

क्या जिंदगी भर में भी हिसाब लगा पाऊंगी
माँ की चोटों का।

-संजू बिरट, परलीका (हनुमानगढ़) 335504

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शनिवार, 9 मई 2009

आपणा बडेरा- (2) हरलाल बैनीवाल

आपणा बडेरा
परलीका : हरलाल बैनीवाल

बीस हजार खर्च कर

गिन्नाणी को अतिक्रमण से बचाया


हरलाल बैनीवाल की उम्र 75 बरस है। गांव की चौपाल पर अकसर उन्हें विश्व की राजनीतिक व आर्थिक हलचलों की गंभीर चर्चाओं में मशगूल देखा जा सकता है। उस जमाने में संगरिया के ग्रामोत्थान विद्यापीठ से दसवीं पास कर चुके हरलाल हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के सहपाठी रह चुके हैं। सार्वजनिक सभाओं में धड़ले से और खासकर मायड़भाषा राजस्थानी में धाराप्रवाह भाषण देने के कारण भी इलाके में उनकी खास पहचान है। वे बताते हैं- 'तब गांवों में पढ़ाई के प्रति रुझान कम था। आज का बी.ए. उस जमाने के तीसरी पास की होड़ नहीं कर सकता। क्योंकि उस समय शिक्षा का मतलब कुंजी पढ़कर डिग्री लेना नहीं था। व्यवहारिक ज्ञान होता था। आज की शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान है, जबकि हमारे जमाने में इसके मायने भिन्न थे। आज का पढ़ा-लिखा युवक घोर अर्थवादी है, तब उसे सामाजिक होना जरूरी था। आजादी आंदोलन का इतिहास है कि युवकों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर सब कुछ वतन पर लुटा दिया। आज रिश्वत देकर नौकरी लगने का फैशन है। उस जमाने के नेता बड़े ईमानदार होते थे। फगत चने के साथ गु़ड खाकर चुनाव का प्रचार करते थे। आज नेता ही देश के दुश्मन हो गये हैं। ईमानदारी के बिना ये देश बिना लगाम का बैल हो गया है। ईमानदारी के लिए पहला प्रयोग अपने पर करना पड़ता है। मैंने गांव की गिन्नाणी पर हुए अतिक्रमण के खिलाफ पांच साल मुकदमा लड़ा। बीस हजार रुपए अपनी जेब से खर्च किए और गिन्नाणी को अतिक्रमण की चपेट से बचाया। सच्चाई के लिए आदमी को अपना सब कुछ होमना पड़ता है। युवकों को संदेश है कि नशे से दूर रहकर विश्व साहित्य का अध्ययन करें। पढ़ाई का पहला मकसद यही होना चाहिए कि शिक्षित होने का लाभ देश-दुनिया को मिले।' रेडियो के नियमित श्रोता और खासकर बीबीसी का हर बुलेटिन सुनने वाले हरलाल का मानना है कि टेलीविजन व सिनेमा अश्लील हो गए हैं, इन्हें बंद करना ही देश-हित में रहेगा।
प्रस्तुति- विनोद स्वामी

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आपणा बडेरा- (1) इमरती देवी

आपणा बडेरा
परलीका : इमरती देवी

एक जणैं गी जूतियां सूं

सारो बास गांवतरो काढियांवतो


99 वर्षीय इमरती देवी का जन्म घेऊ में और शादी परलीका के चंद्रभाण बैनीवाळ से हुई। अपनी पांचवी पीढ़ी को पालने में लोरी सुनाकर सुलाती हुई पुरानी यादों को ताजा करती हैं और मुस्कराकर कहती हैं-'जमानो ना पैली माड़ो हो अर ना अब। बस बगत-बगत गी बात होवै। बीं जमानैगी कई बातां भोत आछी ही तो ईं जमानै गी भी होड कोनी होवै। जद लुगाइयां हाळी आगै सू़ड करती। खेत गो सगळो काम साम गे घर गो काम ई करती, पण थकेलै सार को जाणती नीं। देसी खाणो हो अर देसी ई रहन-सहन।' उन्होंने अपनी पुरानी चश्मा को साफ करते हुए मानो बरसों पीछे झांका तो जूनी बातें निर्मल झरने की तरह बहने लगीं। 'लुगाइयां भातो ले जांवती तो बीं भातै आळै ठाम में टाबर नै ई सुवा गे ले ज्यांवती। खेत में खोड़स्यो करती अर पछै घरे आ गे कूवां गो पाणी न्यारो ल्यांवती। खाण-पीण में लुगाइयां सागै दुभांत चालती, फेर ई लुगाइयां नै काम गो कोड रैंवतो। घणकरी सासुवां गो सुभाव खरो होंवतो। समाज में बां ई लुगाइयां गी कदर ही जकी खोड़स्यो करती अर काण-कायदै सूं रैंवती। लुगाइयां गी जबान गै ताळो हो। गु़ड-मीठो भी ताळै भीतर रैंवतो। पैलड़ो टेम तो चोखो हो ही। पाणी गा फोड़ा तो हा। बिजळी सार जाणता ई कोनी। आणजाण नै ऊंट हा। हारी-बीमारी गो देसी इलाज ई चालतो। मेळजोळ ई असली धन हो। पीसै सूं जादा आदमी गी बात गो मोल हो। आजकाल तो जमीन-जायदाद गै नाम पर भाई-भाई गो बैरी बण ज्यावै। मेरै कोई सागी भाई कोनी हो तो जमीन-जायदाद सगळी ताऊ गै बेटै भाई गै नाम करदी। बांट-बांट गे अर सागै बैठ गे खाण गो रिवाज हो। सुख-दुख गा सगळा सीरी हा। एक जणैं गी जूतियां सूं सारो बास गांवतरो काढियांवतो। जको आदमी बडेरां गो कैणो कोनी मानतो बीं गी इज्जत ई कोनी ही। कू़डा-कपटी मिनखां नै सगळा ई टोकता। पढ़ाई-लिखाई कम ही अर अंधविसवास घणा। छोटी-छोटी हारी-बीमारी खातर झाड़ा, डोरा-डांडा अर टूणां-टसमण गो स्हारो लेंवता। बीं जमानै में चा तो कोई-कोई घर में ई बणती। ल्हासी-राबड़ी अर दूध गी मनवारां ही। चा तो हारी-बीमारी में दवाई गी जिग्यां बरतीजती।' आज की पीढ़ी को संदेश के नाम पर उन्होंने कहा, 'प्रेम भाव सूं रैणो आछो होवै, रिपिया तो आदमी गै हाथ गो मैल होवै। पण आदमी गी इज्जत सैं सूं मोटी होवै। जठै इज्जत अर प्रेम होवै बीं जिंग्यां सारी चीज आवै।'
प्रस्तुति- विनोद स्वामी, परलीका

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बुधवार, 6 मई 2009

नोहर में विश्वकवि हो गए धोळती मूर्ति!

टैगोर जयंती पर विशेष

नोहर में विश्वकवि हो गए धोळती मूर्ति!

राजस्थान भर में नोहर के अलावा शायद ही कोई ऐसा कस्बा हो जहां किसी कवि की स्मृति में बीच शहर कोई भव्य स्मारक बना हो। मगर कैसी विडम्बना है कि नोहर का आमजन इसे टैगोर के स्मारक के रूप में कम और धोळती मूर्ति के रूप में ज्यादा जानता है।

महान रचनाधर्मी, विश्ववंद्य संत, नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार, विश्वकवि, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का नोहर जैसे छोटे कस्बे में स्मारक होना यहां की जनता का अहोभाग्य ही कहा जा सकता है। मगर आमजन की तो क्या कहें शिक्षित समुदाय ने भी कभी इस स्मारक की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा। यहां तक कि यह स्मारक कब व कैसे बना यह बताने वाला भी कस्बे में कोई नजर नहीं आता। हश्र तो यह है कि बढ़ती भीड़ की गाज भी गत वर्ष इस स्मारक पर पड़ी और इसे पहले से संकरा कर दिया गया।

. दो वर्ष पहले टैगोर का भव्य स्मारक

. स्मारक का वर्तमान स्वरुप

नोहर रेलवे स्टेशन से दक्षिण दिशा में बाजार की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर बना यह स्मारक गत वर्ष तक नोहर की शान था। इसका भव्य रूप देखते ही बनता था। वह भव्य रूप तो नहीं रहा मगर आज भी बाहर से आने वाले विद्वजन और कला-प्रेमी यहां एक महान कवि का स्मारक देखकर कस्बे के साहित्यिक लगाव पर भाव-विभोर हुए बिना नहीं रहते। गौरतलब यह भी है कि राजस्थान भर में नोहर के अलावा शायद ही कोई ऐसा कस्बा हो जहां किसी कवि की स्मृति में बीच शहर कोई भव्य स्मारक बना हो। मगर कैसी विडम्बना है कि नोहर का आमजन इसे टैगोर के स्मारक के रूप में कम और धोळती मूर्ति के रूप में ज्यादा जानता है।
एडवोकेट और नगरपालिका के पूर्व उपाध्यक्ष संतलाल तिवाड़ी को यह स्मारक कब बना यह तो ठीक-ठाक याद नहीं पर उनका मानना है कि करीब बत्तीस बरस पहले जब यहां रणजीतसिंह घटाला उपखंड-अधिकारी थे, तब उनके कार्यकाल में यह स्मारक नगरपालिका ने बनवाया था। उन्होंने स्वीकारा कि एक महान साहित्यकार के स्मारक की अनदेखी के पीछे हम शिक्षितों की उदासीनता ही प्रमुख कारण है तथा नगरपालिका को प्रतिवर्ष इनकी जयंती पर जलसा आयोजित करना चाहिए जिससे नई पीढ़ी को इनके जीवन-दर्शन से प्रेरणा मिल सके। 'नोहर का इतिहास' के सृजक इतिहासकार प्रहलाद दत्त पंडा को स्मारक का इतिहास तो मालूम नहीं पर वे यह चिंता जरूर व्यक्त करते हैं कि टैगोर के साहित्य को कस्बे में गंभीरता से पढ़ने वालों का अभाव रहा है। राजस्थान ललित कला अकादमी से पुरस्कृत चित्रकार महेन्द्रप्रताप शर्मा स्मारक की अनदेखी को नोहर का बड़ा दुर्भाग्य मानते हैं। वे कहते हैं कि स्थानीय रचनाधर्मियों का दायित्त्व बनता है कि विशिष्ट अवसरों पर टैगोर के चिंतन पर गोष्ठियां आयोजित करें। कुछ ऐसे ही विचार नोहर स्थित राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एम.डी. गोरा के हैं।
गौरतलब है कि परलीका गांव के रचनाकारों ने करीब पांच वर्ष पहले टैगोर जयंती के अवसर पर यहां आकर स्थानीय कवियों की एक कवि गोष्ठी जरूर आयोजित करवाई थी मगर वह परम्परा का रूप नहीं ले सकी। सवाल उठता है कि अपने रचनाकर्म के बल पर जिन महापुरूषों ने भारतीय दर्शन को नए आयाम दिए, क्या हम अपने व्यस्त जीवन के कुछ पल उनके लिए नहीं निकाल सकते?
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''बड़ा कवि राष्ट्र का गौरव होता है। किसी राष्ट्र के हिस्से में बहुत कम आते हैं बड़े कवि। टैगोर भारत के हिस्से में आने वाले बहुत बड़े कवि थे। विश्वकवि टैगोर को सन् 1913 में बांगला काव्यकृति 'गीतांजली' पर नोबेल पुरस्कार मिला था। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साहित्य की नाटक, निबंध, कथा, आदि गद्य विधाओं के साथ-साथ चित्रकला और संगीत पर भी उनका समान अधिकार था। अनुभव व शिल्प के स्तर पर आज भी उनके जोड़ का साहित्यकार दुर्लभ है। मैं नमन करता हूं उस शख्सियत को जिसके मन में पहली बार इस कस्बे में विश्वकवि का स्मारक बनाने का यह विलक्षण विचार आया और तरस आता है ऐसे तथाकथित बौद्धिकों पर जो इतना ही नहीं जानते कि उनके चौराहे पर किस महान आत्मा की प्रतिमा है।''
-टैगोर के बंगला नाटक 'रक्त करबी' के राजस्थानी अनुवाद 'राती कणेर' के लिए वर्ष 2002 में साहित्य अकादेमी-नई दिल्ली से पुरस्कृत साहित्यकार रामस्वरूप किसान
प्रस्तुति - सत्यनारायण सोनी
9602412124

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सोमवार, 4 मई 2009

आं बच्चां रै सीस पर, बैठ्यो है संसार

एक कानी सकूलां में प्रवेश उच्छब मनायो जावे तो दूजी कानी नान्हा नान्हा पढ़ेसरयां नै घर चलावन री चिंता खाया जावे है. परलीका रो रामावतार स्वामी भी नोंवी जमात रो पढ़ेशरी है



रामस्वरूप किसान रा दूहो चेतै आवै-

लुळ-लुळ जावै टांगड़ी, बो'ळो चकियौ भार।
आं बच्चां रै सीस पर, बैठ्यो है संसार।।


प्रस्तुति- अजय कुमार सोनी
संपादक जनवाणी
समुठ- 9460102521

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सोमवार, 20 अप्रैल 2009

राजस्थानी रै मुद्दे पर खुल'र बोल्या मुख्यमंत्री

गोगामे़डी में चुनावी सभा

राजस्थानी रै मुद्दे पर खुल'र बोल्या मुख्यमंत्री

परलीका(हनुमानगढ़)। सोमवार नै गोगामे़डी में चुनावी सभा नै संबोधित करतां थकां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थानी भाषा री मान्यता रै मुद्दे खुलनै बोल्या। आपरै भाषण में करीब पांच मिनट तक बै इण मुद्दे माथै ई बोलता रैया। वां खुशी प्रगट करी कै अठै रा लोग मायड़भाषा रो मोल समझै अर आपरी भाषा रै प्रति प्रतिबद्ध है। गहलोत कैयो कै पचास साल में कोई सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पारित नीं कर सकी। क्यूंकै केन्द्र में भाषा नै तद ई मान्यता मिलै जद राज्य सरकार संकळप प्रस्ताव पारित करै। हरेक मुख्यमंत्री कोसीसां करी पण एक राय नीं बण सकी। वां कैयो कै म्हनै ओ कैवतां घणो गुमेज हुवै कै लारली दफा जद म्हैं मुख्यमंत्री हो, तद संकळप प्रस्ताव सर्व सम्मति सूं पारित करवायो। अब केन्द्र सरकार लोकसभा अर राज्यसभा में इणनै पारित करवावै इण सारू म्हैं आपनै भरोसो दिराऊं कै रफीक मंडेलिया समेत पार्टी रा सगळा सांसद इण मांग नै लोकसभा अर राज्यसभा में उठावैला। वां भाषा रै मुद्दे माथै साथ देवण रो वायदो करियो अर कैयो कै भारत विविधता में एकता वाळो देश है। अठै दूजी भाषावां री दांईं राजस्थानी नै भी संविधान री आठवीं अनुसूची में शामिल करी जावणी चाइजै। इणसूं राजस्थानी कलाकारां, साहित्यकारां, पत्रकारां अर आमजण रो सम्मान बढ़ैला अर राजस्थान री पिछाण कायम हुवैला।
इणसूं पैलां क्षेत्रीय विधायक जयदीप डूडी, राजस्थानी मोट्यार परिषद रा हनुमानगढ़ जिला महामंत्री संदीप मईया, संरक्षक सतवीर स्वामी समेत मायड़भाषा आंदोलन सूं जुड़िया थका कई कार्यकर्त्ता मुख्यमंत्री सूं मिल्या अर राजस्थानी मान्यता री मांग रो ज्ञापन सूंपतां थकां इण मुद्दे माथै आपरो मत परगट करण री अरज कीनी।

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गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

फूल झड़ै मायड़ रै सबदां,

मीठी-मुळक जबान,

आपणो प्यारो राजस्थान

18 एसपीडी गांव में चौधरी दौलताराम

संस्कृति अवार्ड उच्छब सम्पन्न

हनुमानगढ़, अप्रैल, २००९

बेकळा रेत रै ऊंचै धोरै रै मंच सूं कविता पाठ करता कवि अर बेकळा में हाँसी सूं दोलड़ा होंवतां दरसक। ओ नजारो देखण नै मिल्यो मंगळवार रात नै पीळीबंगा तहसील रै 18 एसपीडी गांव में चौधरी दौलताराम संस्कृति अवार्ड उच्छब-2009 री वेळा एज्यूकेशन सिटी स्थळ माथै आयोजित 'हाँसी री गंगा' कार्यक्रम में।

चौधरी रावताराम मैमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट कानी सूं आयोजित इण कार्यक्रम रो श्रीगणेश गांव रा बडेरा गोपालराम सहारण मां सुरसत रै चितराम साम्हीं दीवो चास'र करियो। ट्रस्ट कानी सूं कवि ताऊ शेखावाटी, रामस्वरूप किसान अर रूपसिंह राजपुरी नै रिजाई अर सैनाणी भेंट कर'र सनमानित करीज्या। हास्य सम्राट ख्याली सहारण पधारियोड़ा पावणां अर दरसकां रो स्वागत-सत्कार करियो। इण मौकै ख्याली बतायो कै ट्रस्ट कानी सूं आगली साल पढेसरी अवार्ड भी सरू करीजसी, जिणमें हनुमानगढ़ जिलै रा पांचवीं, आठवीं, दसवीं अर बारहवी री परीक्षा में पैली ठोड़ रैवण वाळा पढेसर्यां नै अवार्ड दीरीजसी। ट्रस्ट हरेक बरस किसान मेळो भी आयोजित करसी।
कार्यक्रम री सरूआत कवि विनोद स्वामी चंद्रसिंह बिरकाळी रचित वाणी वंदना सूं करी। कवि रामदास बरवाळी रै गीत 'फूल झड़ै मायड़ रै सबदां, मीठी-मुळक जबान, आपणो प्यारो राजस्थान' पर स्रोता झूम उठ्या। रूपसिंह राजपुरी 'स्योलो ताऊ सूत्या हा तू़डी हाळी साळ में' समेत मोकळी कवितावां सूं दरसकां नै लोटपोट कर दिया। रामस्वरूप किसान आपरी हास्य कवितावां रै साथै कई गंभीर अर असरदार कवितावां सूं स्रोतावां नै भाव विभोर कर दिया। आपरी 'अन्नदाता' कविता में वां किसान रो दरद इण भांत परगट करियो- 'म्हैं तो मौत अर जीवण रै बिचाळै पीसीजण आळी चीज हूं, भुरभरी जमीं पर म्हारै हळ सूं काढयोड़ा ऊमरां में तो सदियां सूं करजो ऊगतो आयो है'। सवाईमाधोपुर सूं पधार्या राजस्थानी रा नांमी मंचीय कवि ताऊ शेखावाटी आज री राजनीतिक अर सामाजिक विद्रूपतावां पर चोट करती हास्य कवितावां सुणाई तो हाँसतां-हाँसतां सुणनियां रा पेट दूखण लागग्या। वां रै दुमदार दूहां पर स्रोतावां मोकळा ठरका लगाया। गंभीर कविता 'हेली' में कवि आपरी आत्मा सूं इण भांत बंतळ करी- 'हेली बावळी ए, गजबण तूं क्यूं मगज खपावै, दुनिया तो मेळो है ईं में एक आवै एक जावै'। मंच संचालक विनोद स्वामी आपरी कवितावां सूं आपरै बाळपणै नै चितार्यो। इण मौकै ख्याली ठेठ राजस्थानी में आपरी हास्य प्रस्तुतियां सूं स्रोतावां नै घणा हँसाया। कार्यक्रम मांय इलाकै रा मौकळा कवि-साहित्यकार, पत्रकार, राजस्थानी मान्यता आंदोलन सूं जु़ड्या कार्यकर्ता अर संस्कृति कर्मी मौजूद हा।

विनोद अर रामदास पुरस्कृत

बरस 2009 रो चौधरी दौलताराम संस्कृति अवार्ड परलीका रा युवा कवि विनोद स्वामी अर बरवाळी रा राजस्थानी गीतकार रामदास बरवाळी नै दीरीज्यो। ख्याली रै घरां आयोजित सनमान-समारोह मांय दोनूं कवियां नै ख्याली सहारण राजस्थानी पगड़ी बंधवायी। ख्याली रा माताजी श्रीमती तीजां देवी अर भुआजी श्रीमती धन्नी देवी ५१००-५१०० रिपिया रोकड़ा अर बखांण पाना भेंट कर्या। पछै दोनूं कवियां नै सिणगारियोड़े ऊंटां माथै सवार कर'र गाजै-बाजै सूं मंच तक पुगाया। कवियां रो ओ अनूठो सनमान देख'र जणै-कणै रै मूंडै सूं 'वाह-वाह' निसरती रैयी। मंच माथै कवि ताऊ शेखावाटी, रामस्वरूप किसान अर रूपसिंह राजपुरी दोनूं जणां नै ट्रस्ट कानी सूं दुसाला, सैनाणी अर चांदी रा मैडल भेंट कर्या।

बउवा बाढ अवार्ड

कार्यक्रम में 'बउवा बाढ अवार्ड' भी आकर्षण रो केन्द्र रैयो। 'बउवा बाढणो' मुहावरै रै नांव पर इण अवार्ड रो नांव राखीज्यो है। 18 एसपीडी रै बाळक नरेश सहारण अर परलीका रै पढेसरी प्रमोद सोनी नै मंच माथै सांतरी हास्य प्रस्तुतियां देवण सारू, गांव रा बडेरा दौलताराम भादू नै गांव में हाँसी-ठट्ठा करता रैवण अर मंच रै सूत्रधार रै रूप में विजय नाई नै ट्रस्ट कानी सूं बउवा बाढ अवार्ड सूं सनमानित करीज्या।

'भास्कर' अर ख्याली नै

अनूठी पैल सारू घणा-घणा रंग

कार्यक्रम मांय दैनिक भास्कर श्रीगंगानगर रा संपादक कीर्ति राणा, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश पाटवी हरिमोहन सारस्वत, प्रदेश मंत्री मनोज स्वामी, राजस्थानी चिंतन परिषद् रा बीकानेर संभाग महामंत्री प्रहलाद राय पारीक, मोट्यार परिषद् रा हनुमानगढ़ जिला पाटवी अनिल जांदू, साहित्यकार अली मोहम्मद पड़िहार, दीनदयाल शर्मा, दौलतराम डोटासरा, डॉ।नन्दलाल वर्मा, अशोक बब्बर, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी तारावती भादू, हनुमान खोथ, तोळाराम स्वामी, उम्मेद खोथ, डॉ। विजय भादू, श्रीगंगानगर सूं भोजराज(घी-तेल व्यापारी), श्यामसुंदर(श्याम प्लाईवुड), रामकरण सिंह(एपीपी), रामलाल सहारण, कृष्ण स्याग, भूपसिंह कासणिया(महियांवाळी) समेत राजस्थानी आंदोलन रा मोकळा जुझार भी भेळा होया।
इण मौकै भास्कर संपादक कीर्ति राणा ख्याली नै इण अनूठी पैल सारू दाद दीनी। वां खुद नै मायड़भासा आंदोलन रो एक सिपाही बतायो अर पुरस्कृत संस्कृति कर्मियां नै बधाई दीनी। ख्याली समेत कार्यक्रम में हाजर मायड़भासा आंदोलन रा जुझारां भास्कर नै राजस्थानी भाषा रै प्रचार-प्रसार में जबरै सैयोग सारू मौकळो धन्यवाद दीनो।

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सोमवार, 9 मार्च 2009

पिछाणो दिखाण कुण है?


होळियां में चोखा-चोखा लोग गूंग खिंडावण लागज्यै। पिछाणो दिखाण कुण है?

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पीवण नै ई पाणी कोनीं

पीवण नै पाणी कोनीं। होळी खेलण नै कठै सूं आसी। फोटू चुरू जिलै रै ढाणा गांव री है। मार्च नै झुंझुनू सूं बावड़ती बेळा दरसाव देख्यो तो चितराम मोबाईल फोन रै कैमरै में कैद कर लिया। आप भी देखो सा!






सत्यनारायण सोनी
परलीका
९६०२४१२१२४

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रविवार, 22 फ़रवरी 2009

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २३/२/२००९

सिव-सिव रटै, संकट कटै

-ओम पुरोहित 'कागद'


तीन महादेव बिरमा-बिसणु-महेस। ऐ तीन देव एड़ा, जकां रै मां-बाप रा नांव किणी ग्रंथ मांय नीं लाधै। आं में ओ भेद भी नीं कै तीनां में सूं कुण पैली परगट हुयो। रिषि-मुनि सोध-सोध थक्या। छेकड़ आदि-अनादि-अनन्त कैय'र पिंड छुडायो। इण में सूं भगवान महेस नै देवां रो देव महादेव बतायो। इणी महादेव रै बिरमा-बिसणु रै बीच ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटण री रात नै कैवै- स्योरात। आ फागण रै अंधार-पख री चवदस नै आवै। मानता है कै जको इण दिन बरत राखै। अभिसेक करै। गाभा, धूप अर पुहुपां सूं अरचना करै। जागण करै। 'ऊँ नम: शिवाय' पांचाखर रो जाप करै। रूद्राभिषेक, रूद्राष्टाध्यायी अर रूद्री पाठ करै। बो शिव नै पड़तख पावै। उणमें सूं विकारां रो खैनास व्है जावै। उणनै परमसुख, शांति अर अखूट सुख मिलै।
स्योरात नै शिवपुराण में महाशिवरात्रि, इणरै बरत नै बरतराज कैयीज्यो है। स्योरात जम रो राज मिटावण वाळी। शिवलोक ढुकावण वाळी। मोक्ष देवण वाळी। सातूं सुख बपरावण वाळी। पाप अर भै नास करण वाळी मानीजै।
राजस्थान सूरवीरां री धरा। शिव अर सगति री मोकळी ध्यावना। अठै गढ़ां अर किलां में माताजी, भैरूंजी अर शिवजी रा मोकळा मिंदर। धरणीधर महादेव, शिवबाड़ी, गोपेश्वर महादेव, जैनेश्वर महादेव (बीकानेर), नीलकंठ महादेव (अलवर), हरणीहर महादेव (भीलवाड़ा), मंडलनाथ महादेव, सिद्धनाथ महादेव, भूतनाथ महादेव, जबरनाथ महादेव (जोधपुर), गुप्तेश्वर महादेव, परसराम महादेव (पाली), एकलिंगनाथजी (उदयपुर), ताड़केश्वर महादेव, रोजगारेश्वर महादेव, गळताजी (जयपुर), शिवमंदिर (बाड़ोली), पाताळेश्वर महादेव, पशुपतिनाथ महादेव (नागौर), रा मिंदर नांमी। महादेवजी रा इण मिंदरां में महाशिवरात्रि रा मेळा भरीजै।
अर अबार बांचो, एक लोककथा-

मैणत-सार

एकर मादेवजी दुनियां माथै घणो कोप कीधो। खण लियो कै जठा तांईं आ दुनियां सुधरै नीं, तठा तांईं संख नीं बजावै। मादेवजी संख बजावै तो बरसात व्है। काळ माथै काळ पड़िया। पांणी री छांट ई नीं बरसी। दुनियां घणी कळपी। घणो ई पिरास्चित करियो। पण मादेवजी आपरै प्रण सूं नीं डिगिया।
एक मादेवजी अर पारवतीजी गिगन में उडता जावै हा। कांईं देख्यो कै एक जाट सूखा में ई खेत खड़ै। परसेवा में घांण व्हियोड़ो। लथौबत्थ। भोळै बाबै मन में इचरज करियो कै पांणी बरसियां नै तो बरस व्हिया, पण इण मूरख रो ओ कांई चाळो! विमांण सूं नीचै उतरया। चौधरी नै पूछ्यो- बावळा, बिरथा क्यूं आफळै? सूखी धरती में क्यूँ पसीनो गाळै? पांणी रा तो सपनां ई को आवै नीं। चौधरी बोल्यो- साची फरमावो। पण खड़ण री आदत नीं पांतर जावूं, इण खातर म्हैं तो आयै साल सूड़ करूं, खेत जोतूं। जोतण री जुगत पांतरग्यो तो म्हैं पाणी पड़ियां ईं नीं जै़डो। बात महादेवजी रै हीयै ढूकी। मन में बिचार करियो... म्हनै ई संख बजायां नै बरस बीत्या। संख बजांणो भूल तो नीं गियो। खेत में ऊभा ई जोर सूं संख पूरियो। चौफेर घटा ऊमड़ी। आभै में गड़गड़ाट माची। अणमाप पांणी पड़्यो। जठै निजर ढूकै, उठी जळबंब-ई-जळबंब!


आज रो औखांणो

सिव-सिव रटै, संकट कटै।

किसी देवी-देवता का अस्तित्व हो-न-हो, पर मन की प्रबल भावना की शक्ति अदम्य होती है। शिव-शिव के निरंतर जाप से संकट टल जाते हैं या उनसे सामना करने की ताकत स्वत: बढ़ जाती है।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504

कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!

सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523

कानाबाती -9602412124, 9829176391

email- aapnibhasha@gmail.com
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राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!
साभार- आपणी भाषा ब्लॉग

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