मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

नयो साल री बधाई

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

माय फोटो'ज

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

श्याम जांगिड़ को फोरेंसिक साइंस में जेआरएफ

परलीका के श्याम जांगिड़ को फोरेंसिक साइंस में जेआरएफ

परलीका. यहां के प्रतिभावान युवक श्याम जांगिड़ का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की जूनियर रिसर्च फैलोसिप के लिए चयन हुआ है। श्याम ने आयोग की ओर से जून 2009 में आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में फोरेंसिक साइंस विषयांतर्गत भाग लिया था, जिसका परिणाम सोमवार को घोषित हुआ है।
गौरतलब है मध्यप्रदेश के डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सागर में फोरेंसिक साइंस विषय में एमएससी की राजस्थान राज्य की एकमात्र सीट के कोटे पर वरीयतानुसार वर्ष 2007 में श्याम का प्रवेश हुआ था। श्याम ने इस वर्ष विश्वविद्यालय के सैकण्ड टॉपर विद्यार्थी के रूप में एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की है। एमएससी के दौरान ही इस युवक ने दिसम्बर 2008 में आयोजित यूजीसी की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी उत्तीर्ण की। तेइस वर्षीय श्याम इन दिनों जयपुर के एक विश्वविद्यालय में अन्वेषण अधिकारी के पद पर कार्यरत है। गांव के इस युवक की इस उपलब्धि पर ग्रामीणों ने प्रसन्नता व्यक्त की है।
-अजय सोनी, परलीका।

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

केसरिया बालम


http://www.youtube.com/watch?v=JygrehB-PSY

केसरिया बालम


http://www.youtube.com/watch?v=xrzXJicv8-Q

केसरिया बालमा छोटे उस्ताद


http://www.youtube.com/watch?v=fpYtwtDaltc

केसरिया बालम राजा हसन


http://www.youtube.com/watch?v=calpNKaGo1s

राजा हसन- केसरिया बालम


http://www.youtube.com/watch?v=uok3EWnkmfk

राजस्थानी लोक गीत मेहंदी हसन


http://www.youtube.com/watch?v=XvvoG4qz7mI

राजस्थानी लोक गीत


http://www.youtube.com/watch?v=fg45aNVDkvY

राजस्थानी लोक गीत


http://www.youtube.com/watch?v=r5gXogjqZs8

चूल्ले अग्ग ना घड़े विच पाणी

http://www.youtube.com/watch?v=z3YOYY6v_8M

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे

अक्तूबर, २००९

देश के प्रख्यात जनकवि हरीश भादानी का शुक्रवार की सुबह बीकानेर में तड़के उनके आवास पर निधन हो गया। वे 76 वर्ष के थे। उनके परिवार में तीन पुत्रियां और एक पुत्र है।

उनका पार्थिव शरीर लोगों के दर्शनार्थ आज दिन भर उनके आवास पर रखा जाएगा। उनकी इच्छा के अनुरूप अन्तिम संस्कार के स्थान पर उनकी पार्थिव देह को शनिवार को सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर के छात्रों के अध्ययन के लिए सौंपी जाएगी।

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे. यह खबर हर इन्सान के लिए दुखदायी है. राजस्थानी भाषा मान्यता आन्दोलन को भी उनके रहने से धक्का लगा है। वे मूल रूप से राजस्थानी रचनाकार थे.

उनकी राजस्थानी में प्रकाशित पुस्तकें--

बाथां में भूगोळ (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1984
खण-खण उकळलया हूणिया (होरठा) जोधपुर .ले.स।
खोल किवाड़ा हूणिया, सिरजण हारा हूणिया (होरठा) राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति जयपुर।
तीड़ोराव (नाटक) राजस्थानी भाषा-साहित्य संस्कृति अकादमी, बीकानेर पहला संस्करण 1990 दूसरा 1998
जिण हाथां रेत रचीजै (कविताएं) अंशु प्रकाशन, बीकानेर।

वे पहले ऐसे इन्सान थे जिन्होंने राजस्थानी को राजस्थान की पहली राजभाषा बनाये जाने की मांग की. बीकानेर के लोकमत कार्यालय में 1980 में राजस्थानी दूजी राजभाषा विषय पर वैचरिक गोष्टी के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए उन्होंने बड़े ही तीखे और गरम रुख से राजस्थानी को दूसरी नहीं पहली राजभाषा बनाने की पैरोकारी की.
राजस्थानी के लिए आजीवन संघर्षरत रहने वाले मायडभाषा के इस सच्चे और जुझारू सपूत को हमारी विनम्र श्रधान्जली।







श्री हरीश भादानी देश के बड़े कवि थे। श्री हरीश जी अपनी कविता ‘‘ये राज बोलता स्वराज बोलता....’’ एवं ‘‘रोटी नाम संत हैं....’’ दिल्ली के इंडिया गेट के आगे प्रस्तुत की थी। उनकी इस स्तर की कविताएं हैं। लोग इनकी कविताओं को गाते हैं, गुनगुनाते हैं। डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी जो कि बंगाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने अपने भाषण में श्री हरीश जी की कविताओं में स्थानीयता के पुट को नकारते हुए कहा कि ये उनको राष्ट्रीय स्तर पर जाने से रोकता है, परंतु श्री भादानीजी की हिन्दी और राजस्थानी की कविताओं की राष्ट्रीय पहचान पहले से प्राप्त हो चुकी है।11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में आपका जन्म हुआ। आपकी प्रथमिक शिक्षा हिन्दी-महाजनी-संस्कृत घर में ही हुई। आपका जीवन संघर्षमय रहा । सड़क से जेल तक कि कई यात्राओं में आपको काफी उतार-चढ़ाव नजदीक से देखने को अवसर मिला । रायवादियों-समाजवादियों के बीच आपने सारा जीवन गुजार दिया। आपने कोलकाता में भी काफी समय गुजारा। आपकी पुत्री श्रीमती सरला माहेश्वरी ‘माकपा’ की तरफ से दो बार राज्यसभा की सांसद भी रह चुकी है। आपने 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादक भी रहे । कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी पत्रिका ‘कलम’ (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। आपकी प्रोढ़शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा पर 20-25 पुस्तिकायें राजस्थानी में। राजस्थानी भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने के लिए आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता। ‘सयुजा सखाया’ प्रकाशित। आपको राजस्थान साहित्य अकादमी से ‘मीरा’ प्रियदर्शिनी अकादमी, परिवार अकादमी(महाराष्ट्र), पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से ‘राहुल’, । ‘एक उजली नजर की सुई(उदयपुर), ‘एक अकेला सूरज खेले’(उदयपुर), ‘विशिष्ठ साहित्यकार’(उदयपुर), ‘पितृकल्प’ के.के.बिड़ला फाउंडेशन से ‘बिहारी’ सम्मान से आपको सम्मानीत किया जा चुका है
Some Books of Shri Harish Bhadani

हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें:


अधूरे गीत (हिन्दी-राजस्थानी) 1959 बीकानेर।
सपन की गली (हिन्दी गीत कविताएँ) 1961 कलकत्ता।
हँसिनी याद की (मुक्तक) सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर 1963।
एक उजली नजर की सुई (गीत) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966 (दूसरा संस्करण-पंचशीलप्रकाशन, जयपुर)
सुलगते पिण्ड (कविताएं) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966
नश्टो मोह (लम्बी कविता) धरती प्रकाशन बीकानेर 1981
सन्नाटे के शिलाखंड पर (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर1982।
एक अकेला सूरज खेले (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1983 (दूसरा संस्करण-कलासनप्रकाशन, बीकानेर 2005)
रोटी नाम सत है (जनगीत) कलम प्रकाशन, कलकत्ता 1982।
सड़कवासी राम (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1985।
आज की आंख का सिलसिला (कविताएं) कविता प्रकाशन,1985।
विस्मय के अंशी है (ईशोपनिषद व संस्कृत कविताओं का गीत रूपान्तर) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1988ं
साथ चलें हम (काव्यनाटक) गाड़ोदिया प्रकाशन, बीकानेर 1992।
पितृकल्प (लम्बी कविता) वैभव प्रकाशन, दिल्ली 1991 (दूसरा संस्करण-कलासन प्रकाशन, बीकानेर 2005)
सयुजा सखाया (ईशोपनिषद, असवामीय सूत्र, अथर्वद, वनदेवी खंड की कविताओं का गीत रूपान्तर मदनलाल साह एजूकेशन सोसायटी, कलकत्ता 1998।
मैं मेरा अष्टावक्र (लम्बी कविता) कलासान प्रकाशन बीकानेर 1999
क्यों करें प्रार्थना (कविताएं) कवि प्रकाशन, बीकानेर 2006
आड़ी तानें-सीधी तानें (चयनित गीत) कवि प्रकाशन बीकानेर 2006
अखिर जिज्ञासा (गद्य) भारत ग्रन्थ निकेतन, बीकानेर २००७
भादानी की दो कवितायें
1.
बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थें
विंयां घड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो?
[‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]
2.
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
ऐरावत पर इंदर बैठे
बांट रहे टोपियां

झोलिया फैलाये लोग
भूग रहे सोटियां
वायदों की चूसणी से
छाले पड़े जीभ पर
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बोले खाली पेट की
करोड़ क्रोड़ कूडियां
खाकी वरदी वाले भोपे
भरे हैं बंदूकियां
पाखंड के राज को
स्वाहा-स्वाहा होमदे
राज के बिधाता सुण तेरे ही निमत्त है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बाजरी के पिंड और
दाल की बैतरणी
थाली में परोसले
हथाली में परोसले

दाता जी के हाथ
मरोड़ कर परोसले
भूख के धरम राज यही तेरा ब्रत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
[रोटी नाम सत है]

प्रस्तुति - सत्यनारायण सोनी.

रविवार, 20 सितंबर 2009

अनार हुए बीमार, किसान हताश







परलीका(हनुमानगढ़), 20 सितम्बर। क्षेत्र में अनारों के करीब बीस बाग अज्ञात रोग की चपेट में हैं। किसानों के अनुसार उनके बागों में पकने से पहले फल दागी हो कर फट रहे हैं। बागवानी विभाग के पास रोग की रोकथाम के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। इससे यहां के किसान हताश हैं और बैंकों से निरंतर मिल रहे तकाजे उनके लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। काश्तकार मुआवजे व कर्जा माफी की मांग को लेकर लामबद्ध हो रहे हैं। गौरतलब है कि क्षेत्र के फेफाना, रामगढ़, परलीका, रामसरा व जसाना इत्यादि गांवों के प्रगतिशील किसानों ने राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड व उद्यान विभाग-राजस्थान से अनुदान लेकर ये बाग लगाए थे। कुछ काश्तकारों तो अभी अनुदान का भी इंतजार है। खेतों में बड़े-बड़े वाटर-टैंक निर्माण सहित किसानों को कई तरह की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक मशक्कत करनी पड़ी और करीब तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद जब बाग में फल का वक्त आया तो उन्हें बेहद निराशा का सामना करना पड़ा है। परम्परागत खेती को तो नुकसान हुआ- जसाना के संतलाल सहारण ने बताया कि उनके 20 बीघा में बाग है। फल आ गया है मगर सारे अनार पहले दागी हो रहें हैं तथा बाद में बीच में से अपने आप फट रहे हैं। इससे उनकी पूरी फसल चौपट हो रही है। संबंधित विभाग को कई बार अवगत करवाया गया है मगर न तो यहां विभाग के लोगों ने आकर कोई सुझाव दिया है न ही उनके पास इस रोग की पुख्ता जानकारी है। ऊपर से किसानों को बैंकों की ओर से भी लगातार तंग किया जा रहा है। बागवानी से उनकी परम्परागत खेती को तो नुकसान हुआ ही है, बैंकों के कर्ज से भी वे बुरी तरह दब गए हैं। विभाग की बातों से विश्वास उठा- रामगढ़ के काश्तकार जोगेन्द्रसिंह वर्मा का आक्रोश है कि बागवानी विभाग ने उन्हें बड़े-बड़े सब्ज बाग दिखाए तो उनकी बड़ी-बड़ी बातों में आकर बाग लगाया, तीन वर्षों तक बच्चों की तरह पौधों का पालन-पोषण किया। अपने खेत में अन्य फसलें भी नहीं उगा पाया और अब बाग की हालत खस्ता हो जाने से उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है। विशेषज्ञों की टीम तुरंत भेजने की मांग- फेफाना के बलवीर बिजारणिंया ने किसानों के ऋण माफ करने की मांग की है। उनका कहना है कि अनुदान समय पर मिलना चाहिए तथा रोग से शीघ्र निजात दिलाने के लिए विभाग को तुरंत विशेषज्ञों की टीम भेजनी चाहिए। किसानों का यह भी आरोप है कि बागवानी विभाग के पास भी न तो इस रोग की रोकथाम के पुख्ता इंतजाम हैं और न ही विभाग अभी रोग का निदान व उपचार बता पाया है। विभाग ने कभी 'विजिट' नहीं की- 32 जेएसएन के किसान शार्दूलसिंह सहारण की भी यही पीड़ है कि विभाग ने कभी यहां की 'विजिट' नहीं की है। किसान जसवंत सिंह चौधरी जसाना, संदीप मईया परलीका, हरिशचन्द्र गोदारा फेफाना, सरदार गुरदित्तासिंह रामसरा की भी कमोबेश यही पीड़ा है।



अधिकारियों के मुख से



''इस संबंध में राज्य सरकार को रिपोर्ट प्रेषित कर दी गई है। किसानों को हुए नुक्सान को लेकर विस्तृत जानकारी भेजी गई है। जहां तक मुआवजे की बात है। यह राज्य स्तर का मामला है। उम्मीद है सरकार कोई नीतिगत निर्णय लेगी।' -डॉ. रविकुमार एस, कलेक्टर हनुमानगढ़



''अनार का दागी होकर फटना क्रॉप मैनेजमेंट की कमी की वजह से होता है। इससे बचाव के लिए फरवरी-मार्च की फ्लावरिंग का ही फल लेना चाहिए। मई-जून में फ्लॉवरिंग के दौरान ज्यादा तापमान होने की वजह से फल दागी होकर फटता है। इन महीनों की फ्लावरिंग को पौधे से अलग कर देना चाहिए।' -डॉ. एस पी सिंह, उपनिदेशक, उद्यान विभाग, श्रीगंगानगर।



''किसानों की मांग के मध्यनजर जिला कलक्टर महोदय ने प्रमुख शासन सचिव एवं उद्यान विभाग को पत्र लिखकर इस समस्या से अवगत करवा दिया है। विभाग के पास अभी तक रोग का निदान और उपचार संभव नहीं हो पाया है। हम शीघ्र ही विशेषज्ञों की टीम अवलोकन के लिए भेज रहे हैं।'-जयनारायण बैनीवाल, सहायक निदेशक, उद्यान विभाग, हनुमानगढ़।



रिपोर्ट - अजय कुमार सोनी, परलीका (हनुमानगढ़) दूरभाष- 9269567088

बुधवार, 15 जुलाई 2009

सपेरो नचावै सांप

सोमवार, 13 जुलाई 2009

माली हालत खस्ता फिर भी बीपीएल सूची से बाहर

खुद अंधा, पत्नी विकलांग, बेटा गूंगा और माली

हालत
खस्ता फिर भी बीपीएल सूची से बाहर


परलीका। गरीबों का आज भी कोई धणी-धोरी नहीं है। नजदीकी गांव रामगढ़ के चंदूराम कुम्हार की हालत देखकर तो हर कोई यही कह सकता है। सत्तर साल के चंदूलाल अंधे हैं, तो पत्नी विकलांग। गूंगे बेटे की मजदूरी पर पेट की भूख शांत करने वाले इस परिवार की माली हालत बेहद खस्ता है। कच्चे मकानों की जर्जर दीवारें व छत हादसों को निमंत्रण दे रही है। फिर भी ग्राम पंचायत ने अब तक इस परिवार को बीपीएल सूची में भी शामिल नहीं किया है, और न ही कोई अन्य प्रकार की सरकारी सुविधा इन्हें मिल पाई है। एक तरफ ग्राम पंचायत के सरपंच का दावा है कि इनका नाम बीपीएल सूची में जोड़ दिया गया है जबकि बीपीएल परिवार का कोई लाभ इन्हें न मिलने से यह दावा भी खोखला साबित हुआ है।
वार्ड 9 के निवासी चंदूराम ने बताया कि 'मैं सत्तर साल गो होग्यो। म्हनै कोई भांत गी सरकारी इमदाद अब तक कोनी मिली। पैली तो कार कर लेंवतो पण अब आंख्यां सूं सूझणो बंद होग्यो। मेरै हाण गै बूढियां नै पैंशन मिलै पण म्हनै तो कोनी मिलै। ना मेरो नाम बीपीएल में जोड्यो। कोटा री कणक ई मिल जावै तो ठीक है, पण कोनी मिलै। मेरै च्यार बेटा है। तीन गाम सूं बारै कई बरसां सूं मजूरी करगे पेट भरै। कई बरसां सूं मेरो सबसूं छोटो बेटो मेरै सागै है। जिको गूंगो है। बीं री मजूरी सूं म्हारो पेट भरै। जे म्हनै पिलसण मिल ज्यावै अर बीपीएल में जोड़ देवै तो फोड़ा मिटज्या। मेरो घर ई पड़ण आळो होर्यो है। घरआळी विकलांग है। लीपा-चांकी कुण करै। छात अर भींत चौमासै में ऊपर ई पड़ सकै। पखानो कोनी। ना चालीजै ना दीखै, कठै जावां? जे सरकार कूई खुदाद्यै तो ठीक काम होज्या।'
....................................................................................................

'चंदूराम के परिवार की हालत को देखते हुए अबकी बार इनका नाम बीपीएल सूची में जोड़ दिया गया है। इनको इन्दिरा आवास के तहत मकान बनवाने का भी निर्णय लिया गया है, जो शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। ग्राम पंचायत की ओर से इनको नि:शुल्क आवासीय भूखंड भी दिया जाएगा।' -राजेन्द्र आर्य, सरपंच, रामगढ़
...विनोद स्वामी, परलीका

शनिवार, 30 मई 2009

बडेरे हुए बुरज

बडेरे हुए बुरज

बुरजों के प्रति लोगों का आकर्षण घट जरूर गया है, परन्तु इनकी उपयोगिता को कम करके नहीं आंका जा सकता।


परलीका। विनोद स्वामी
समय के साथ हर चीज का रंग फीका पड़ जाता है। गांवों में आधुनिक सुविधाओं के पहुंचने के साथ ही पुरखों से विरासत में मिले बुरजों की कद्र अब घट गई है। खेतों में खड़े ये बुरज भी अब 'बडेरे' हो गए हैं। मरम्मत के अभाव में बरसात के साथ घुल-घुल कर पसरते जा रहे ये बुरज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं, मगर आज भी इनकी उपयोगिता को कम करके नहीं आंका जा सकता।
आदिम युग में जब पहिए का आविष्कार नहीं हो पाया था और आदमी ने आग जलाना सीखा ही था, तभी शायद बुरज की कल्पना को आदमी ने मूर्तरूप दिया होगा। यह शायद गुफाओं व कंदराओं का विकसित रूप रहा हो। ज्यों-ज्यों मानव ने विकास किया घास-फूस की टापलियों व झोंपड़ियों ने गुफाओं की जगह ले ली। उसके बाद आदमी के रहने की सबसे उत्तम व्यवस्था संभवतया बुरज ही रही होगी। समय की धार के साथ ही कलाकारों ने इसे अलग-अलग रूपों, नामों व आकारों से सजाया-संवारा। किसी भी मंदिर, मस्जिद, मकबरे, गुरुद्वारे तथा गिरजाघर को गौर से देखा जाए तो उनमें बुरज जैसा कुछ अवश्य दिखाई पड़ता है। बुरज की यात्रा ने समय-समय पर करवट बदली, जिसका दर्शन मिश्र के पिरामिडों से लेकर राजा-महाराजाओं के महलों तक देखा जा सकता है।
कुछ वर्षों पूर्व तक खेतों में जो पिरामिडनुमा बुरज हर कहीं दिखाई दे जाते थे, वे अब कहीं-कहीं नजर आते हैं। बुरज बनाने की कला बहुत पहले ही दम तौड़ चुकी है, वहीं क्षेत्र के खेतों में खड़े इक्के-दुक्के बुरज भी अंतिम सांसें गिन रहे हैं। बुजुर्गों ने बताया कि आज से चार-पांच दशक पहले तक गांवों में बुरजों की अपनी विशेष अहमियत होती थी। बुरज को सम्पन्नता के साथ रुतबे व रौब का प्रतीक भी माना जाता था। विकास के साथ जैसे-जैसे सीमेंट व लोहे का प्रचलन आम हुआ गांवों से बुरज खत्म होते गए और आज गांव के किसी घर में बुरज होना पिछड़ेपन का कारण माना जाता है।
बुरज बनने के अपने कारण व खूबियां थी। उस समय मकानों की ओर लोगों का ध्यान कम था। छत में काम आने वाली लकड़ी की सामग्री दीमक खा जाती थी, जिससे बरसात के दौरान अनेक हादसों का सामना करना पड़ता था। बुरज बनाने में मात्र कच्ची ईंटें व गारा काम में लिया जाता था। लकड़ी इत्यादि की जरूरत न होने एवं इसकी बनावट अलग होने से यह बरसात, सर्दी व गर्मी हर ऋतु में मनुष्य का साथ देता था। न छत गिरने का डर, न दीमक का प्रकोप। सारे झंझटों से मुक्ति मिल जाती थी। बुरज को दूरगामी सोच का प्रतीक भी माना जाता था। ताजी हवा आने के लिए मोरियां रखी जाती थीं। आज भी खेतों में खड़े ये बुरज बरसात, आंधी-तूफान व सर्दी की रातों में भे़ड चराते भे़डपालकों का आसरा बनते हैं। जब आकाश में बादल होते हैं, काली-पीली आंधी उमड़ आती है, तो भे़डपालकों की नजरें इन बुरजों को ही तलाशती हैं। बुरजों के प्रति अब लोगों का आकर्षण घट जरूर गया है, परन्तु इनकी उपयोगिता को कम करके नहीं आंका जा सकता। ये बुरज एक ओर जहां खेतों की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं, वहीं अतीत की स्मृतियां भी ताजा करते हैं। अब जब आदमी कंकरीट के जंगलों में खो जाने की मानसिकता का गुलाम हो गया है, तब उसे मिट्टी से बने बुरज में माटी की महक कैसे आ सकती है?

'बडेरा' स्थानीय भाषा में घर के सबसे वृद्ध व्यक्ति को कहा जाता है। यह 'पूर्वज' का भी पर्याय है।

गुरुवार, 14 मई 2009

आपणा बडेरा (3)- प्रेमदास स्वामी

आपणा बडेरा
परलीका: प्रेमदास स्वामी

मायतां गी सेवा करसी बो ई सुखी रैसी

78 वर्षीय प्रेमदास स्वामी ने अपनी जिंदगी में न तो कभी अखबार पढ़ा, न रेडियो सुना। टेलीविजन तो आज भी उन्हें देवीय कृपा या मायाजाल-सा लगता है। उनको यह बात हैरान नहीं करती कि टी.वी. पर खबर क्या चल रही है, बल्कि उन्हें तो हैरत है कि जमाना कितना आगे निकल चुका है। पिछले चालीस सालों से लगातार सूत की कताई कर कलात्मक चारपाई, पीढ़े, रास, बोरा, जेवड़ा बनाने वाले इस बुजुर्ग को देखा तो जिज्ञासा हुई कि जमाने को इनकी नजर से देखा जाए। वे बताने लगे-'पैली अर अब में रात-दिन गो फरक आग्यो। जद कोसां उपाळो चालणो पड़तो, अब पांवडो ई धरण गो काम कोनी पड़ै। पाणी गा ई सांसां मिटग्या। दिनां तांईं न्हांवतां कोनी। अब सगळो गाम बीन बण्यो फिरै अर बारामासी गळियां में कादो कोनी सूकै। पै'ली नूंवां गाबा बरसां तक कोनी मिलता आज छोटै-छोटै टाबरां गै एक-एक लादो है। ब्याव में फगत एक जोड़ी धोती-कुड़तै सूं मैं भोत राजी हो। आज एक लादो कपड़ा हरेक आदमी गै होग्या। कारी-कुटका तो रैया ई कोनी। रिपियां सार पैली जाणता ई कोनी, पण अब तो जामतै टाबर नै ई रिपियै गो कोड। बीं बगत मन मांय एक न्यारो चाव-सो होंवतो। अब बा बात ई कोनी रैयी। आधी-आधी रात तांईं गुवाड़ां में कबड्डी खेलता। संपत हो। लड़ाई कोनी होंवती। मैं चाळीस साल तक खूब डांगर-ढोर चराया, सीरी रैयो, रात-दिन कमायो पण थकेलै गो नाम कोनी जाण्यो। अब तो पूछै जिको ई जेब सूं गोळी काढ गे होठ ढीला छोड़द्यै कै आंसग कोनी। तावळी-सी रीस ई कोनी आंवती। आजकाल फोन मांखर ई बात करतां सुणां जद लागै जाणै ईं रै माखर ई सामलै रै बटको बोडसी।
ढेरिया घुमाते हुए वे कहते हैं- 'म्हारै जमाने में ढेरियै गी चोखी चलबल ही। लुगाइयां चरखो अर माणस ढेरियो कातता। ढेरियै बिना मनै आवड़ै कोनी। बिलम गो बिलम अर काम गो काम। हाड चालै इतणै आदमी नै काम करणो चईयै। अब तो माचा अर पीढा फगत छोरियां नै दायजै में देवण खातर बणगे द्यूं। जमानो प्लास्टिक गो आग्यो। आपणी चीज्यां नै ओपरी चीज्यां खावण लागगी। बोरा तो गमईग्या। मेळै में गिंवारियै गी कुण सुणै। अब ढेरै गी बा तार कोनी रैयी।' वे बात का रुख मोड़ते हैं- 'खळा काढणा भोत दोरो काम हो। म्हीनै तांई पून कोनी चालती तो लियां ई बैठ्या रैंवता। ऊंटां पर नाज ढोणो दो'रो हो। आज मसीनां गै कारण खेती अर गाम-गमतरा करणां सोखा होग्या। पण...' ऐसा कहते-कहते प्रेमदास मानो दूर कहीं खो गए और चेहरे पर चिंता के भाव छा गए। बोले-'आदमी जमाने गै सागै कीं बेसी बदळग्यो। भाई-भाई खातर ज्यान देंवतो, पण आज हाथ-हाथ नै खावै। संपत अर प्रेम भाव तो जाबक ई कम होग्यो। ऊंट पर बोरो घाल चीणा बेचण जांवता, च्यार रिपिया मण गो भाव हो। संतोष हो। अब टराली भर-भर बेचै, पण सबर कोनी। कम मैणत में बखार भर जावै आ तो ठीक है, पण पाणी गी भांत रिपियो खर्च करद्यै, बीं गी कीमत कोनी मानै। आ बात आछी कोनी। आजकाल आळां खातर मैं कैवूं कै बै हराम गी खाण गी नीत ना राखै, मैणत, लगन अर प्रेम भाव सूं आपरो हीलो करै। मायतां गी बेकदरी भोत होगी। मायतां गी सेवा करसी बो ई सुखी रैसी।'
प्रस्तुति- विनोद स्वामी
समुठ- 9829176391

सोमवार, 11 मई 2009

मेरी माँ- संजू बिरट


संजू बिरट 12 वीं की छात्रा है। इसकी कविताएं बेहद भावपूर्ण होती हैं। इस कविता में एक श्रमशील मां की क्रियाशीलता बखूबी उजागर हुई है। - संपादक





मेरी माँ

लकड़ी, उपले और चूल्हे को
सूखा रखने के लिए

दौड़
रही है मेरी माँ
इस चक्कर में
भीग गई है
खुद
अन्दर तक।

चूल्हे को ढकने की मशक्कत में
कम पड़ गए हैं बर्तन
इसी बीच याद आई
पशुओं के ठाण में रखी
सड़ी-गली तू़डी
दौड़ती है माँ उसे निकालने को।

तभी टपकने लगता है
सरकण्डे की टूटी-फूटी
छत वाला एक मात्र कमरा
जिसमें बिल्कुल सिमटे हुए
बैठे हैं मेरे छह भाई-बहिन
और मेरे पिता
पर माँ लगी है
छत की मरम्मत में
बिना सीमेंट और कंकरीट के
मात्र बालू से ही कर रही
कोशिश हमारी सुरक्षा की।

तैर गए हैं बरतन
भीग गए हैं गुदड़े
याद आया माँ को
कोने में रखा थोड़ा-सा आटा
उतरती है जल्दी-जल्दी
इसी जल्दी में गिर पड़ती है माँ।

अपनी चोट भूलकर भी
याद है बच्चों का पेट
एक हाथ को बांधे
एक ही हाथ से
गूंथ रही है थोड़ा-सा आटा
तीन इंर्टों को खड़ा करके
बनाया है चूल्हा।

रोटी बनाते-बनाते खो गई
विचारों में
करने लगीं बातें खुद से ही
शायद कर रही है याद
कुछ और जो रह गया है बाहर
इसी बीच जलने लगी रोटी
हाथ से उतारने में जल गई अंगुली
क्योंकि चिमटा जो काफी दिनों से
कर रहा है काम चूल्हे की पाती का।

कम पड़ गई हैं रोटियां
टटोलती है माँ
अस्त-व्यस्त सामान के बीच
आटे की थैली
पर, बिल्कुल खाली है वह
करती है माँ समझौता खुद से ही
भूखी रह लूंगी आज तो क्या
और मैं देखती हूं-
हमारे अगले वक्त की रोटी के लिए
भूखे ही गुजरता है माँ का हर वक्त।

काँपते बच्चों और पति को
ठंड से बचाने में
माँ खुद बच जाती है कथरी ओढ़ने से
रात भर बैठी रहती है
दुबकी एक कोने में
क्योंकि दो खाटों पर तो
जैसे-तैसे पति और बच्चों को सुलाया है माँ ने।

यूं ही बीत जाती है रात
और फिर माँ की वही मशक्कत
ना बाहर की हालत सुधरती है
ना ही माँ की दिनचर्या
सोचती हूं, मुझे सूखा रखने में
कहाँ तक भीगी है माँ
मेरा पेट भरने के लिए
कितनी रातें करवटें बदलते काटी हैं माँ ने

क्या जिंदगी भर में भी हिसाब लगा पाऊंगी
माँ की चोटों का।

-संजू बिरट, परलीका (हनुमानगढ़) 335504

शनिवार, 9 मई 2009

आपणा बडेरा- (2) हरलाल बैनीवाल

आपणा बडेरा
परलीका : हरलाल बैनीवाल

बीस हजार खर्च कर

गिन्नाणी को अतिक्रमण से बचाया


हरलाल बैनीवाल की उम्र 75 बरस है। गांव की चौपाल पर अकसर उन्हें विश्व की राजनीतिक व आर्थिक हलचलों की गंभीर चर्चाओं में मशगूल देखा जा सकता है। उस जमाने में संगरिया के ग्रामोत्थान विद्यापीठ से दसवीं पास कर चुके हरलाल हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के सहपाठी रह चुके हैं। सार्वजनिक सभाओं में धड़ले से और खासकर मायड़भाषा राजस्थानी में धाराप्रवाह भाषण देने के कारण भी इलाके में उनकी खास पहचान है। वे बताते हैं- 'तब गांवों में पढ़ाई के प्रति रुझान कम था। आज का बी.ए. उस जमाने के तीसरी पास की होड़ नहीं कर सकता। क्योंकि उस समय शिक्षा का मतलब कुंजी पढ़कर डिग्री लेना नहीं था। व्यवहारिक ज्ञान होता था। आज की शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान है, जबकि हमारे जमाने में इसके मायने भिन्न थे। आज का पढ़ा-लिखा युवक घोर अर्थवादी है, तब उसे सामाजिक होना जरूरी था। आजादी आंदोलन का इतिहास है कि युवकों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर सब कुछ वतन पर लुटा दिया। आज रिश्वत देकर नौकरी लगने का फैशन है। उस जमाने के नेता बड़े ईमानदार होते थे। फगत चने के साथ गु़ड खाकर चुनाव का प्रचार करते थे। आज नेता ही देश के दुश्मन हो गये हैं। ईमानदारी के बिना ये देश बिना लगाम का बैल हो गया है। ईमानदारी के लिए पहला प्रयोग अपने पर करना पड़ता है। मैंने गांव की गिन्नाणी पर हुए अतिक्रमण के खिलाफ पांच साल मुकदमा लड़ा। बीस हजार रुपए अपनी जेब से खर्च किए और गिन्नाणी को अतिक्रमण की चपेट से बचाया। सच्चाई के लिए आदमी को अपना सब कुछ होमना पड़ता है। युवकों को संदेश है कि नशे से दूर रहकर विश्व साहित्य का अध्ययन करें। पढ़ाई का पहला मकसद यही होना चाहिए कि शिक्षित होने का लाभ देश-दुनिया को मिले।' रेडियो के नियमित श्रोता और खासकर बीबीसी का हर बुलेटिन सुनने वाले हरलाल का मानना है कि टेलीविजन व सिनेमा अश्लील हो गए हैं, इन्हें बंद करना ही देश-हित में रहेगा।
प्रस्तुति- विनोद स्वामी

आपणा बडेरा- (1) इमरती देवी

आपणा बडेरा
परलीका : इमरती देवी

एक जणैं गी जूतियां सूं

सारो बास गांवतरो काढियांवतो


99 वर्षीय इमरती देवी का जन्म घेऊ में और शादी परलीका के चंद्रभाण बैनीवाळ से हुई। अपनी पांचवी पीढ़ी को पालने में लोरी सुनाकर सुलाती हुई पुरानी यादों को ताजा करती हैं और मुस्कराकर कहती हैं-'जमानो ना पैली माड़ो हो अर ना अब। बस बगत-बगत गी बात होवै। बीं जमानैगी कई बातां भोत आछी ही तो ईं जमानै गी भी होड कोनी होवै। जद लुगाइयां हाळी आगै सू़ड करती। खेत गो सगळो काम साम गे घर गो काम ई करती, पण थकेलै सार को जाणती नीं। देसी खाणो हो अर देसी ई रहन-सहन।' उन्होंने अपनी पुरानी चश्मा को साफ करते हुए मानो बरसों पीछे झांका तो जूनी बातें निर्मल झरने की तरह बहने लगीं। 'लुगाइयां भातो ले जांवती तो बीं भातै आळै ठाम में टाबर नै ई सुवा गे ले ज्यांवती। खेत में खोड़स्यो करती अर पछै घरे आ गे कूवां गो पाणी न्यारो ल्यांवती। खाण-पीण में लुगाइयां सागै दुभांत चालती, फेर ई लुगाइयां नै काम गो कोड रैंवतो। घणकरी सासुवां गो सुभाव खरो होंवतो। समाज में बां ई लुगाइयां गी कदर ही जकी खोड़स्यो करती अर काण-कायदै सूं रैंवती। लुगाइयां गी जबान गै ताळो हो। गु़ड-मीठो भी ताळै भीतर रैंवतो। पैलड़ो टेम तो चोखो हो ही। पाणी गा फोड़ा तो हा। बिजळी सार जाणता ई कोनी। आणजाण नै ऊंट हा। हारी-बीमारी गो देसी इलाज ई चालतो। मेळजोळ ई असली धन हो। पीसै सूं जादा आदमी गी बात गो मोल हो। आजकाल तो जमीन-जायदाद गै नाम पर भाई-भाई गो बैरी बण ज्यावै। मेरै कोई सागी भाई कोनी हो तो जमीन-जायदाद सगळी ताऊ गै बेटै भाई गै नाम करदी। बांट-बांट गे अर सागै बैठ गे खाण गो रिवाज हो। सुख-दुख गा सगळा सीरी हा। एक जणैं गी जूतियां सूं सारो बास गांवतरो काढियांवतो। जको आदमी बडेरां गो कैणो कोनी मानतो बीं गी इज्जत ई कोनी ही। कू़डा-कपटी मिनखां नै सगळा ई टोकता। पढ़ाई-लिखाई कम ही अर अंधविसवास घणा। छोटी-छोटी हारी-बीमारी खातर झाड़ा, डोरा-डांडा अर टूणां-टसमण गो स्हारो लेंवता। बीं जमानै में चा तो कोई-कोई घर में ई बणती। ल्हासी-राबड़ी अर दूध गी मनवारां ही। चा तो हारी-बीमारी में दवाई गी जिग्यां बरतीजती।' आज की पीढ़ी को संदेश के नाम पर उन्होंने कहा, 'प्रेम भाव सूं रैणो आछो होवै, रिपिया तो आदमी गै हाथ गो मैल होवै। पण आदमी गी इज्जत सैं सूं मोटी होवै। जठै इज्जत अर प्रेम होवै बीं जिंग्यां सारी चीज आवै।'
प्रस्तुति- विनोद स्वामी, परलीका

बुधवार, 6 मई 2009

नोहर में विश्वकवि हो गए धोळती मूर्ति!

टैगोर जयंती पर विशेष

नोहर में विश्वकवि हो गए धोळती मूर्ति!

राजस्थान भर में नोहर के अलावा शायद ही कोई ऐसा कस्बा हो जहां किसी कवि की स्मृति में बीच शहर कोई भव्य स्मारक बना हो। मगर कैसी विडम्बना है कि नोहर का आमजन इसे टैगोर के स्मारक के रूप में कम और धोळती मूर्ति के रूप में ज्यादा जानता है।

महान रचनाधर्मी, विश्ववंद्य संत, नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार, विश्वकवि, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का नोहर जैसे छोटे कस्बे में स्मारक होना यहां की जनता का अहोभाग्य ही कहा जा सकता है। मगर आमजन की तो क्या कहें शिक्षित समुदाय ने भी कभी इस स्मारक की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा। यहां तक कि यह स्मारक कब व कैसे बना यह बताने वाला भी कस्बे में कोई नजर नहीं आता। हश्र तो यह है कि बढ़ती भीड़ की गाज भी गत वर्ष इस स्मारक पर पड़ी और इसे पहले से संकरा कर दिया गया।

. दो वर्ष पहले टैगोर का भव्य स्मारक

. स्मारक का वर्तमान स्वरुप

नोहर रेलवे स्टेशन से दक्षिण दिशा में बाजार की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर बना यह स्मारक गत वर्ष तक नोहर की शान था। इसका भव्य रूप देखते ही बनता था। वह भव्य रूप तो नहीं रहा मगर आज भी बाहर से आने वाले विद्वजन और कला-प्रेमी यहां एक महान कवि का स्मारक देखकर कस्बे के साहित्यिक लगाव पर भाव-विभोर हुए बिना नहीं रहते। गौरतलब यह भी है कि राजस्थान भर में नोहर के अलावा शायद ही कोई ऐसा कस्बा हो जहां किसी कवि की स्मृति में बीच शहर कोई भव्य स्मारक बना हो। मगर कैसी विडम्बना है कि नोहर का आमजन इसे टैगोर के स्मारक के रूप में कम और धोळती मूर्ति के रूप में ज्यादा जानता है।
एडवोकेट और नगरपालिका के पूर्व उपाध्यक्ष संतलाल तिवाड़ी को यह स्मारक कब बना यह तो ठीक-ठाक याद नहीं पर उनका मानना है कि करीब बत्तीस बरस पहले जब यहां रणजीतसिंह घटाला उपखंड-अधिकारी थे, तब उनके कार्यकाल में यह स्मारक नगरपालिका ने बनवाया था। उन्होंने स्वीकारा कि एक महान साहित्यकार के स्मारक की अनदेखी के पीछे हम शिक्षितों की उदासीनता ही प्रमुख कारण है तथा नगरपालिका को प्रतिवर्ष इनकी जयंती पर जलसा आयोजित करना चाहिए जिससे नई पीढ़ी को इनके जीवन-दर्शन से प्रेरणा मिल सके। 'नोहर का इतिहास' के सृजक इतिहासकार प्रहलाद दत्त पंडा को स्मारक का इतिहास तो मालूम नहीं पर वे यह चिंता जरूर व्यक्त करते हैं कि टैगोर के साहित्य को कस्बे में गंभीरता से पढ़ने वालों का अभाव रहा है। राजस्थान ललित कला अकादमी से पुरस्कृत चित्रकार महेन्द्रप्रताप शर्मा स्मारक की अनदेखी को नोहर का बड़ा दुर्भाग्य मानते हैं। वे कहते हैं कि स्थानीय रचनाधर्मियों का दायित्त्व बनता है कि विशिष्ट अवसरों पर टैगोर के चिंतन पर गोष्ठियां आयोजित करें। कुछ ऐसे ही विचार नोहर स्थित राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एम.डी. गोरा के हैं।
गौरतलब है कि परलीका गांव के रचनाकारों ने करीब पांच वर्ष पहले टैगोर जयंती के अवसर पर यहां आकर स्थानीय कवियों की एक कवि गोष्ठी जरूर आयोजित करवाई थी मगर वह परम्परा का रूप नहीं ले सकी। सवाल उठता है कि अपने रचनाकर्म के बल पर जिन महापुरूषों ने भारतीय दर्शन को नए आयाम दिए, क्या हम अपने व्यस्त जीवन के कुछ पल उनके लिए नहीं निकाल सकते?
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''बड़ा कवि राष्ट्र का गौरव होता है। किसी राष्ट्र के हिस्से में बहुत कम आते हैं बड़े कवि। टैगोर भारत के हिस्से में आने वाले बहुत बड़े कवि थे। विश्वकवि टैगोर को सन् 1913 में बांगला काव्यकृति 'गीतांजली' पर नोबेल पुरस्कार मिला था। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साहित्य की नाटक, निबंध, कथा, आदि गद्य विधाओं के साथ-साथ चित्रकला और संगीत पर भी उनका समान अधिकार था। अनुभव व शिल्प के स्तर पर आज भी उनके जोड़ का साहित्यकार दुर्लभ है। मैं नमन करता हूं उस शख्सियत को जिसके मन में पहली बार इस कस्बे में विश्वकवि का स्मारक बनाने का यह विलक्षण विचार आया और तरस आता है ऐसे तथाकथित बौद्धिकों पर जो इतना ही नहीं जानते कि उनके चौराहे पर किस महान आत्मा की प्रतिमा है।''
-टैगोर के बंगला नाटक 'रक्त करबी' के राजस्थानी अनुवाद 'राती कणेर' के लिए वर्ष 2002 में साहित्य अकादेमी-नई दिल्ली से पुरस्कृत साहित्यकार रामस्वरूप किसान
प्रस्तुति - सत्यनारायण सोनी
9602412124

सोमवार, 4 मई 2009

आं बच्चां रै सीस पर, बैठ्यो है संसार

एक कानी सकूलां में प्रवेश उच्छब मनायो जावे तो दूजी कानी नान्हा नान्हा पढ़ेसरयां नै घर चलावन री चिंता खाया जावे है. परलीका रो रामावतार स्वामी भी नोंवी जमात रो पढ़ेशरी है



रामस्वरूप किसान रा दूहो चेतै आवै-

लुळ-लुळ जावै टांगड़ी, बो'ळो चकियौ भार।
आं बच्चां रै सीस पर, बैठ्यो है संसार।।


प्रस्तुति- अजय कुमार सोनी
संपादक जनवाणी
समुठ- 9460102521

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

राजस्थानी रै मुद्दे पर खुल'र बोल्या मुख्यमंत्री

गोगामे़डी में चुनावी सभा

राजस्थानी रै मुद्दे पर खुल'र बोल्या मुख्यमंत्री

परलीका(हनुमानगढ़)। सोमवार नै गोगामे़डी में चुनावी सभा नै संबोधित करतां थकां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थानी भाषा री मान्यता रै मुद्दे खुलनै बोल्या। आपरै भाषण में करीब पांच मिनट तक बै इण मुद्दे माथै ई बोलता रैया। वां खुशी प्रगट करी कै अठै रा लोग मायड़भाषा रो मोल समझै अर आपरी भाषा रै प्रति प्रतिबद्ध है। गहलोत कैयो कै पचास साल में कोई सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पारित नीं कर सकी। क्यूंकै केन्द्र में भाषा नै तद ई मान्यता मिलै जद राज्य सरकार संकळप प्रस्ताव पारित करै। हरेक मुख्यमंत्री कोसीसां करी पण एक राय नीं बण सकी। वां कैयो कै म्हनै ओ कैवतां घणो गुमेज हुवै कै लारली दफा जद म्हैं मुख्यमंत्री हो, तद संकळप प्रस्ताव सर्व सम्मति सूं पारित करवायो। अब केन्द्र सरकार लोकसभा अर राज्यसभा में इणनै पारित करवावै इण सारू म्हैं आपनै भरोसो दिराऊं कै रफीक मंडेलिया समेत पार्टी रा सगळा सांसद इण मांग नै लोकसभा अर राज्यसभा में उठावैला। वां भाषा रै मुद्दे माथै साथ देवण रो वायदो करियो अर कैयो कै भारत विविधता में एकता वाळो देश है। अठै दूजी भाषावां री दांईं राजस्थानी नै भी संविधान री आठवीं अनुसूची में शामिल करी जावणी चाइजै। इणसूं राजस्थानी कलाकारां, साहित्यकारां, पत्रकारां अर आमजण रो सम्मान बढ़ैला अर राजस्थान री पिछाण कायम हुवैला।
इणसूं पैलां क्षेत्रीय विधायक जयदीप डूडी, राजस्थानी मोट्यार परिषद रा हनुमानगढ़ जिला महामंत्री संदीप मईया, संरक्षक सतवीर स्वामी समेत मायड़भाषा आंदोलन सूं जुड़िया थका कई कार्यकर्त्ता मुख्यमंत्री सूं मिल्या अर राजस्थानी मान्यता री मांग रो ज्ञापन सूंपतां थकां इण मुद्दे माथै आपरो मत परगट करण री अरज कीनी।

गुरुवार, 2 अप्रैल 2009

फूल झड़ै मायड़ रै सबदां,

मीठी-मुळक जबान,

आपणो प्यारो राजस्थान

18 एसपीडी गांव में चौधरी दौलताराम

संस्कृति अवार्ड उच्छब सम्पन्न

हनुमानगढ़, अप्रैल, २००९

बेकळा रेत रै ऊंचै धोरै रै मंच सूं कविता पाठ करता कवि अर बेकळा में हाँसी सूं दोलड़ा होंवतां दरसक। ओ नजारो देखण नै मिल्यो मंगळवार रात नै पीळीबंगा तहसील रै 18 एसपीडी गांव में चौधरी दौलताराम संस्कृति अवार्ड उच्छब-2009 री वेळा एज्यूकेशन सिटी स्थळ माथै आयोजित 'हाँसी री गंगा' कार्यक्रम में।

चौधरी रावताराम मैमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट कानी सूं आयोजित इण कार्यक्रम रो श्रीगणेश गांव रा बडेरा गोपालराम सहारण मां सुरसत रै चितराम साम्हीं दीवो चास'र करियो। ट्रस्ट कानी सूं कवि ताऊ शेखावाटी, रामस्वरूप किसान अर रूपसिंह राजपुरी नै रिजाई अर सैनाणी भेंट कर'र सनमानित करीज्या। हास्य सम्राट ख्याली सहारण पधारियोड़ा पावणां अर दरसकां रो स्वागत-सत्कार करियो। इण मौकै ख्याली बतायो कै ट्रस्ट कानी सूं आगली साल पढेसरी अवार्ड भी सरू करीजसी, जिणमें हनुमानगढ़ जिलै रा पांचवीं, आठवीं, दसवीं अर बारहवी री परीक्षा में पैली ठोड़ रैवण वाळा पढेसर्यां नै अवार्ड दीरीजसी। ट्रस्ट हरेक बरस किसान मेळो भी आयोजित करसी।
कार्यक्रम री सरूआत कवि विनोद स्वामी चंद्रसिंह बिरकाळी रचित वाणी वंदना सूं करी। कवि रामदास बरवाळी रै गीत 'फूल झड़ै मायड़ रै सबदां, मीठी-मुळक जबान, आपणो प्यारो राजस्थान' पर स्रोता झूम उठ्या। रूपसिंह राजपुरी 'स्योलो ताऊ सूत्या हा तू़डी हाळी साळ में' समेत मोकळी कवितावां सूं दरसकां नै लोटपोट कर दिया। रामस्वरूप किसान आपरी हास्य कवितावां रै साथै कई गंभीर अर असरदार कवितावां सूं स्रोतावां नै भाव विभोर कर दिया। आपरी 'अन्नदाता' कविता में वां किसान रो दरद इण भांत परगट करियो- 'म्हैं तो मौत अर जीवण रै बिचाळै पीसीजण आळी चीज हूं, भुरभरी जमीं पर म्हारै हळ सूं काढयोड़ा ऊमरां में तो सदियां सूं करजो ऊगतो आयो है'। सवाईमाधोपुर सूं पधार्या राजस्थानी रा नांमी मंचीय कवि ताऊ शेखावाटी आज री राजनीतिक अर सामाजिक विद्रूपतावां पर चोट करती हास्य कवितावां सुणाई तो हाँसतां-हाँसतां सुणनियां रा पेट दूखण लागग्या। वां रै दुमदार दूहां पर स्रोतावां मोकळा ठरका लगाया। गंभीर कविता 'हेली' में कवि आपरी आत्मा सूं इण भांत बंतळ करी- 'हेली बावळी ए, गजबण तूं क्यूं मगज खपावै, दुनिया तो मेळो है ईं में एक आवै एक जावै'। मंच संचालक विनोद स्वामी आपरी कवितावां सूं आपरै बाळपणै नै चितार्यो। इण मौकै ख्याली ठेठ राजस्थानी में आपरी हास्य प्रस्तुतियां सूं स्रोतावां नै घणा हँसाया। कार्यक्रम मांय इलाकै रा मौकळा कवि-साहित्यकार, पत्रकार, राजस्थानी मान्यता आंदोलन सूं जु़ड्या कार्यकर्ता अर संस्कृति कर्मी मौजूद हा।

विनोद अर रामदास पुरस्कृत

बरस 2009 रो चौधरी दौलताराम संस्कृति अवार्ड परलीका रा युवा कवि विनोद स्वामी अर बरवाळी रा राजस्थानी गीतकार रामदास बरवाळी नै दीरीज्यो। ख्याली रै घरां आयोजित सनमान-समारोह मांय दोनूं कवियां नै ख्याली सहारण राजस्थानी पगड़ी बंधवायी। ख्याली रा माताजी श्रीमती तीजां देवी अर भुआजी श्रीमती धन्नी देवी ५१००-५१०० रिपिया रोकड़ा अर बखांण पाना भेंट कर्या। पछै दोनूं कवियां नै सिणगारियोड़े ऊंटां माथै सवार कर'र गाजै-बाजै सूं मंच तक पुगाया। कवियां रो ओ अनूठो सनमान देख'र जणै-कणै रै मूंडै सूं 'वाह-वाह' निसरती रैयी। मंच माथै कवि ताऊ शेखावाटी, रामस्वरूप किसान अर रूपसिंह राजपुरी दोनूं जणां नै ट्रस्ट कानी सूं दुसाला, सैनाणी अर चांदी रा मैडल भेंट कर्या।

बउवा बाढ अवार्ड

कार्यक्रम में 'बउवा बाढ अवार्ड' भी आकर्षण रो केन्द्र रैयो। 'बउवा बाढणो' मुहावरै रै नांव पर इण अवार्ड रो नांव राखीज्यो है। 18 एसपीडी रै बाळक नरेश सहारण अर परलीका रै पढेसरी प्रमोद सोनी नै मंच माथै सांतरी हास्य प्रस्तुतियां देवण सारू, गांव रा बडेरा दौलताराम भादू नै गांव में हाँसी-ठट्ठा करता रैवण अर मंच रै सूत्रधार रै रूप में विजय नाई नै ट्रस्ट कानी सूं बउवा बाढ अवार्ड सूं सनमानित करीज्या।

'भास्कर' अर ख्याली नै

अनूठी पैल सारू घणा-घणा रंग

कार्यक्रम मांय दैनिक भास्कर श्रीगंगानगर रा संपादक कीर्ति राणा, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश पाटवी हरिमोहन सारस्वत, प्रदेश मंत्री मनोज स्वामी, राजस्थानी चिंतन परिषद् रा बीकानेर संभाग महामंत्री प्रहलाद राय पारीक, मोट्यार परिषद् रा हनुमानगढ़ जिला पाटवी अनिल जांदू, साहित्यकार अली मोहम्मद पड़िहार, दीनदयाल शर्मा, दौलतराम डोटासरा, डॉ।नन्दलाल वर्मा, अशोक बब्बर, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी तारावती भादू, हनुमान खोथ, तोळाराम स्वामी, उम्मेद खोथ, डॉ। विजय भादू, श्रीगंगानगर सूं भोजराज(घी-तेल व्यापारी), श्यामसुंदर(श्याम प्लाईवुड), रामकरण सिंह(एपीपी), रामलाल सहारण, कृष्ण स्याग, भूपसिंह कासणिया(महियांवाळी) समेत राजस्थानी आंदोलन रा मोकळा जुझार भी भेळा होया।
इण मौकै भास्कर संपादक कीर्ति राणा ख्याली नै इण अनूठी पैल सारू दाद दीनी। वां खुद नै मायड़भासा आंदोलन रो एक सिपाही बतायो अर पुरस्कृत संस्कृति कर्मियां नै बधाई दीनी। ख्याली समेत कार्यक्रम में हाजर मायड़भासा आंदोलन रा जुझारां भास्कर नै राजस्थानी भाषा रै प्रचार-प्रसार में जबरै सैयोग सारू मौकळो धन्यवाद दीनो।

सोमवार, 9 मार्च 2009

पिछाणो दिखाण कुण है?


होळियां में चोखा-चोखा लोग गूंग खिंडावण लागज्यै। पिछाणो दिखाण कुण है?

पीवण नै ई पाणी कोनीं

पीवण नै पाणी कोनीं। होळी खेलण नै कठै सूं आसी। फोटू चुरू जिलै रै ढाणा गांव री है। मार्च नै झुंझुनू सूं बावड़ती बेळा दरसाव देख्यो तो चितराम मोबाईल फोन रै कैमरै में कैद कर लिया। आप भी देखो सा!






सत्यनारायण सोनी
परलीका
९६०२४१२१२४

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