सोमवार, 3 नवंबर 2008

राजेश चड्ढा की गजले..................

बुल्ले शाह सी यारी रखता हूँ
नानक खुमारी रखता हूं
मीरा के तन मन कृष्ण मैं
सूरत तुम्हारी रखता हूं
अपना फरीदी वेश है
दरवेश दारी रखता हूं
चादर कबीरी जस की तस
खातिर तुम्हारी रखता हूं
ईसा सी माफी दे सकूं
कोसिस ये जारी रखता हूं
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फिर उनको देखा तो आंखें भरी है
अभी तो पुरानी ही चोटें हरी हैं
हमसे तो लफजों का बयान मुश्किल
तेरा लब हिलाना ही शायरी है
उसने कहा था कि बातें खत्म हैं
जला दो ये जितनी किताबें धरी हैं
किस्सा नहीं है ये इल्म-ओ-अदब
कभी तुमने अपनी हकीकत पढ़ी है।
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राजेश चड्ढा (वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी सूरतगढ) कानाबाती- ९४१४३८१९३९

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