शनिवार, 9 मई 2009

आपणा बडेरा- (2) हरलाल बैनीवाल

आपणा बडेरा
परलीका : हरलाल बैनीवाल

बीस हजार खर्च कर

गिन्नाणी को अतिक्रमण से बचाया


हरलाल बैनीवाल की उम्र 75 बरस है। गांव की चौपाल पर अकसर उन्हें विश्व की राजनीतिक व आर्थिक हलचलों की गंभीर चर्चाओं में मशगूल देखा जा सकता है। उस जमाने में संगरिया के ग्रामोत्थान विद्यापीठ से दसवीं पास कर चुके हरलाल हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के सहपाठी रह चुके हैं। सार्वजनिक सभाओं में धड़ले से और खासकर मायड़भाषा राजस्थानी में धाराप्रवाह भाषण देने के कारण भी इलाके में उनकी खास पहचान है। वे बताते हैं- 'तब गांवों में पढ़ाई के प्रति रुझान कम था। आज का बी.ए. उस जमाने के तीसरी पास की होड़ नहीं कर सकता। क्योंकि उस समय शिक्षा का मतलब कुंजी पढ़कर डिग्री लेना नहीं था। व्यवहारिक ज्ञान होता था। आज की शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान है, जबकि हमारे जमाने में इसके मायने भिन्न थे। आज का पढ़ा-लिखा युवक घोर अर्थवादी है, तब उसे सामाजिक होना जरूरी था। आजादी आंदोलन का इतिहास है कि युवकों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर सब कुछ वतन पर लुटा दिया। आज रिश्वत देकर नौकरी लगने का फैशन है। उस जमाने के नेता बड़े ईमानदार होते थे। फगत चने के साथ गु़ड खाकर चुनाव का प्रचार करते थे। आज नेता ही देश के दुश्मन हो गये हैं। ईमानदारी के बिना ये देश बिना लगाम का बैल हो गया है। ईमानदारी के लिए पहला प्रयोग अपने पर करना पड़ता है। मैंने गांव की गिन्नाणी पर हुए अतिक्रमण के खिलाफ पांच साल मुकदमा लड़ा। बीस हजार रुपए अपनी जेब से खर्च किए और गिन्नाणी को अतिक्रमण की चपेट से बचाया। सच्चाई के लिए आदमी को अपना सब कुछ होमना पड़ता है। युवकों को संदेश है कि नशे से दूर रहकर विश्व साहित्य का अध्ययन करें। पढ़ाई का पहला मकसद यही होना चाहिए कि शिक्षित होने का लाभ देश-दुनिया को मिले।' रेडियो के नियमित श्रोता और खासकर बीबीसी का हर बुलेटिन सुनने वाले हरलाल का मानना है कि टेलीविजन व सिनेमा अश्लील हो गए हैं, इन्हें बंद करना ही देश-हित में रहेगा।
प्रस्तुति- विनोद स्वामी

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आपणा बडेरा- (1) इमरती देवी

आपणा बडेरा
परलीका : इमरती देवी

एक जणैं गी जूतियां सूं

सारो बास गांवतरो काढियांवतो


99 वर्षीय इमरती देवी का जन्म घेऊ में और शादी परलीका के चंद्रभाण बैनीवाळ से हुई। अपनी पांचवी पीढ़ी को पालने में लोरी सुनाकर सुलाती हुई पुरानी यादों को ताजा करती हैं और मुस्कराकर कहती हैं-'जमानो ना पैली माड़ो हो अर ना अब। बस बगत-बगत गी बात होवै। बीं जमानैगी कई बातां भोत आछी ही तो ईं जमानै गी भी होड कोनी होवै। जद लुगाइयां हाळी आगै सू़ड करती। खेत गो सगळो काम साम गे घर गो काम ई करती, पण थकेलै सार को जाणती नीं। देसी खाणो हो अर देसी ई रहन-सहन।' उन्होंने अपनी पुरानी चश्मा को साफ करते हुए मानो बरसों पीछे झांका तो जूनी बातें निर्मल झरने की तरह बहने लगीं। 'लुगाइयां भातो ले जांवती तो बीं भातै आळै ठाम में टाबर नै ई सुवा गे ले ज्यांवती। खेत में खोड़स्यो करती अर पछै घरे आ गे कूवां गो पाणी न्यारो ल्यांवती। खाण-पीण में लुगाइयां सागै दुभांत चालती, फेर ई लुगाइयां नै काम गो कोड रैंवतो। घणकरी सासुवां गो सुभाव खरो होंवतो। समाज में बां ई लुगाइयां गी कदर ही जकी खोड़स्यो करती अर काण-कायदै सूं रैंवती। लुगाइयां गी जबान गै ताळो हो। गु़ड-मीठो भी ताळै भीतर रैंवतो। पैलड़ो टेम तो चोखो हो ही। पाणी गा फोड़ा तो हा। बिजळी सार जाणता ई कोनी। आणजाण नै ऊंट हा। हारी-बीमारी गो देसी इलाज ई चालतो। मेळजोळ ई असली धन हो। पीसै सूं जादा आदमी गी बात गो मोल हो। आजकाल तो जमीन-जायदाद गै नाम पर भाई-भाई गो बैरी बण ज्यावै। मेरै कोई सागी भाई कोनी हो तो जमीन-जायदाद सगळी ताऊ गै बेटै भाई गै नाम करदी। बांट-बांट गे अर सागै बैठ गे खाण गो रिवाज हो। सुख-दुख गा सगळा सीरी हा। एक जणैं गी जूतियां सूं सारो बास गांवतरो काढियांवतो। जको आदमी बडेरां गो कैणो कोनी मानतो बीं गी इज्जत ई कोनी ही। कू़डा-कपटी मिनखां नै सगळा ई टोकता। पढ़ाई-लिखाई कम ही अर अंधविसवास घणा। छोटी-छोटी हारी-बीमारी खातर झाड़ा, डोरा-डांडा अर टूणां-टसमण गो स्हारो लेंवता। बीं जमानै में चा तो कोई-कोई घर में ई बणती। ल्हासी-राबड़ी अर दूध गी मनवारां ही। चा तो हारी-बीमारी में दवाई गी जिग्यां बरतीजती।' आज की पीढ़ी को संदेश के नाम पर उन्होंने कहा, 'प्रेम भाव सूं रैणो आछो होवै, रिपिया तो आदमी गै हाथ गो मैल होवै। पण आदमी गी इज्जत सैं सूं मोटी होवै। जठै इज्जत अर प्रेम होवै बीं जिंग्यां सारी चीज आवै।'
प्रस्तुति- विनोद स्वामी, परलीका

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