जिंदगी में रस घोल दिया शहद नेपरलीका क्षेत्र में एक दर्जन युवा किसानों ने बनाया आजीविका का साधन
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परलीका (हनुमानगढ़). हनुमानगढ़ जिले के परलीका व रामगढ़ गांवों के किसानों व शिक्षित युवकों का रुझान मधुमक्खी पालन की ओर बढ़ रहा है और इलाके के करीब एक दर्जन नौजवानों ने इसे व्यवसाय के रूप में अपनाया है। युवा किसानों के अनुसार यह व्यवसाय किसानों के लिए काफी लाभप्रद साबित हो रहा है और शहद ने उनकी जिंदगी में रस घोल दिया है।
परलीका में इसकी शुरुआत प्रगतिशील युवा किसान मुखराम सहारण ने की। वे वर्ष 2005 से लगातार शहद उत्पादन कर रहे हैं। शुरू में जानकारियों के अभाव में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा, मगर बाद में कृषि एवं उद्यान विभाग व कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा उपलब्ध सुविधाओं तथा प्रशिक्षण से यह व्यवसाय काफी आसानी से होने लगा है। मुखराम से व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त कर इसी गांव के युवक सतवीर बैनीवाल तथा नरेश जांगिड़ ने भी इस व्यवसाय को अपनी आजीविका का साधन बनाया है। समीपवर्ती रामगढ़ ग्राम में युवक मीठूसिंह, सज्जन राहड़, सुरेन्द्र भाम्भू, बगड़ावतसिंह भाम्भू, पवन नैण आदि भी पूर्ण सफलता के साथ शहद उत्पादन कर रहे हैं। इन किसानों के पास
मधुमक्खियों के 200 से अधिक बक्से हैं जिन्हें अब तक सरसों के खेतों में रखा गया था और अब हरियाणा के किन्नू-माल्टा बागानों में भेज दिया गया है।
शहद उत्पादकों के अनुसार राज्य सरकार की ओर से दिया जाने वाला अनुदान व अन्य सुविधाएं अपर्याप्त हैं तथा राज्य सरकार की उदासीनता से यह व्यवसाय अधिक प्रगति नहीं कर पा रहा है। सरकार अगर पर्याप्त सहयोग करे और सम्बन्धित उपकरण व तकनीकों की जानकारी उपलब्ध करवाए तो इस व्यवसाय से शहद के साथ-साथ मोम, रायलजैली, मोनोविष आदि का भी उत्पादन सम्भव है।
हनुमानगढ़ जिले में 150 इकाइयां स्थापित
कृषि विज्ञान केन्द्र संगरिया के विषय विशेषज्ञ (पौध संरक्षण) डॉ. उमेश कुमार का कहना है कि हनुमानगढ़ जिले में मधुमक्खी पालन की लगभग 150 इकाइयां स्थापित
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हो चुकी हैं। इस क्षेत्र में बीटी कपास के क्षेत्रफल में वृद्धि होने से कीटनाशकों का प्रयोग 30 प्रतिशत तक कम हुआ है, जिस कारण से इस व्यवसाय को भी अपरोक्ष रूप से अच्छा लाभ हुआ है और शहद का उत्पादन भी बढ़ा है। इस वर्ष शहद के भाव बढऩे से भी उत्पादकों का हौसला बढ़ा है। उन्होंने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों के लिए मधुमक्खी पालन पर प्रतिवर्ष पांच दिवसीय नि:शुल्क प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है। इसी प्रकार उद्यान विभाग प्रति बक्से पर 400 तथा प्रति कॉलोनी 350 रुपयों का अनुदान भी देता है।
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''मधुमक्खी पालन एक लाभप्रद रोजगार है, जिसे खेतीबाड़ी के साथ-साथ सहायक धन्धे के रूप में भी अपनाया जा सकता है। इस व्यवसाय से मधुमक्खी पालक को जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं आस-पास के किसानों की फसलों में मधुमक्खियों द्वारा होने वाले प्राकृतिक परागण से 10 से 20 फीसदी तक अतिरिक्त उत्पादन होता है।''-सज्जन राहड़, मधुमक्खी पालक, रामगढ़।
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''मैं घणो पढेड़ो कोनी, पण मेरै खातर ओ रोजगार वरदा
न साबित होयो है। कई नौजवान साथी ईं काम नै मिलगे कर सकै। बेरोजगारी गै जमानै में आज हाथ पर हाथ धरगे बैठणै गी बजाय ईं तरियां गा रोजगार करणा चइयै।''-मुखराम सहारण, मधुमक्खी पालक, परलीका।
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''मधुमक्खी प्रकृति के अनमोल खजाने को बटोरकर हमें पेश करती है। मधुमक्खी प्रकृति के फूलों से मकरन्द एकत्र कर शहद, रायलजैली, मोम व मोनोविष आदि उपलब्ध कराती है जो कि आर्थिक रूप से लाभकारी है तथा स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद है।''-नरेश जांगिड़, मधुमक्खी पालक, परलीका।
फोटो- 1. परलीका में बक्सों से शहद निकालते हुए मधुमक्खी पालक। 2. डॉ. उमेश कुमार 3. सज्जन राहड़ 4. मुखराम सहारण 5. नरेश जांगिड़।
रिपोर्टर : अजय कुमार सोनी
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