शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

नूंवै बरस री मोकळी-मोकळी मंगळकामनावां

नूंवै बरस री मोकळी-मोकळी मंगळकामनावां।

आपरा सगळा कारज पूरा होवै
घर में सातूं सुख बापरै।

नयै बरस भी नेह आपरो
गयै बरस री भांत राखियो।
रट्ठ निरा ई ताळ रो पड़ै
टाबरां री ख्यांत राखियो।।
- मोहन आलोक

बेली थारै आंगणै, उड़तो रेवै गुलाल।
बांध भरोटो हरख रो, ल्यावै नूंवो साल।।
-रामस्वरूप किसान

इणीज कामना साथै
जनवाणी परिवार


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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

जनवाणी रो छठो अंक......

श्री सुगन साहित्य सम्मान- एक ओळखांण

श्री सुगन स्मृति संस्थान रा अध्यक्ष हरिमोहन सारस्वत आपरै पिता स्व. श्री सुगन चंद जी सारस्वत री स्मृति में सन् २००३ में राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति रै विकास सारू 'श्री सुगन साहित्य सम्मान' री सरूआत करी। इण पुरस्कार में ५१०० रिपिया रोकड़ा, बखांण-पानो, नारेळ अर दुसालो भेंट कर्यो जावै। ओ सम्मान पैल-पोत फतेहपुर शेखावाटी रा डॉ. चेतन स्वामी नै वां री कथाकृति 'किस्तूरी मिरग' पर दियो गयो, पछै इण पोथी पर लेखक नै केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी मिल्यो। राजस्थानी रा नामी कवि ताऊ शेखावाटी नै वां री काव्य-कृति 'मीरां-राणाजी संवाद' माथै भी ओ पुरस्कार दियो जा चुक्यो है। लारलो पुरस्कार कोलकाता में बस्या राजस्थानी री सेवा करण वाळा साहित्यकार अम्बू शर्मा नै दियो गयो। बरस २००७ रो पुरस्कार राजस्थानी भासा री संवैधानिक मान्यता सारू संघर्षरत युवा तुर्क अर प्रगतिशील रचनाकार परलीका वासी विनोद स्वामी नै दियो जासी। पुरस्कार समारोह १३ दिसम्बर २००८ नै सूरतगढ़ मांय होसी।


विनोद स्वामी-एक ओळखांण

विनोद स्वामी रो जलम १४ जुलाई १९७७ नै हनुमानगढ़ जिलै रै परलीका गांव में पिता श्री रामलाल अर माता श्रीमती चंद्रपति देवी रै आंगणै हुयो। राजस्थानी कविता सारू आपरो लगाव बाळपणै सूं ई रैयो है। आप एम.ए.(राजनीति विज्ञान अर राजस्थानी) अर पत्रकारिता अर जनसंचार में स्नातक उपाधि हासिल करी। बरस १९९९ सूं जुलाई २००२ तांईं राजस्थान पत्रिका सारू समाचार संकलन अर संपादकीय कार्यालय में काम अर 'आओ गांव चलें' स्तम्भ लेखन कर्यो।
राजस्थानी अर हिन्दी री मोकळी पत्र-पत्रिकावां में आपरी रचनावां छपै अर आकाशवाणी सूं प्रसारित हुवै। आपरी कवितावां रा अंग्रेजी, हिन्दी अर पंजाबी में भी ऊथळा हुया है। साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली री पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य अर 'इंडियन लिटरेचर' मांय भी आपरी रचनावां छपती रैवै। ५ सितम्बर, २००४ नै साहित्य अकादेमी री स्वर्ण जयंती रै मौके भोपाल रै भारत भवन में आयोजित 'नए स्वर' कार्यक्रम में आप राजस्थानी काव्य पाठ कर`र भारतीय साहित्य रा दिग्गजां सूं वाहवाही लूटी अर राजस्थानी री समकालीन कविता री निराली पिछाण कायम करी।
कवि-सम्मेलन, सांस्कृतिक कार्यक्रम अर जन-आंदोलनां में आपरी सक्रिय भागीदारी रैवै। राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन री अलख जगावण सारू आप लगोतार जातरा करता रैवै। राजस्थान रै घणकरै गांवां-कस्बां अर सहरां में जाय`र आप जन-सभावां, स्कूलां अर कॉलेजां में पढेसर्यां री सभावां करी है अर मायड़भासा री महता समझाई है। मायड़भासा रै सम्मान सारू सब सूं लाम्बी दूरी री जातरा करण वाळा आप पैला मिनख है। राजस्थानी रा लगैटगै सगळा आधुनिक अर चर्चित कवियां री कवितावां आपरै कंठां है। मीठै गळै रा धणी विनोद स्वामी सुणावण लागै तो सुणनियां 'एकर और-एकर और' री मांग करता ई रैवै। विनोद स्वामी रै पांण राजस्थानी भासा अर साहित्य रो प्रचार-प्रसार पैली बार इत्ती गंभीरता सूं हुयो अर गांव-गांव में मायड़भासा सारू एक नूंवीं चेतना जागी।
श्री सुगन साहित्य सम्मान सूं पैली आपनै बरस २००३ मांय मरूधरा साहित्य परिषद, हनुमानगढ़ रो चंद्रसिंह बिरकाळी सम्मान भी मिल चुक्यो है। आपनै घणा-घणा रंग।

विनोद स्वामी री कवितावां

बाई
भूंदेड़ै चीणां रो आपरै मुंह में लोधो बणा`र
म्हारै मंुह में घाल देंवती बाई।
डोकी छोलण सूं म्हारी आंगळी कै होठ कट नीं जावै
छोल-छोल पोरी देंवती बाई।
काची निंबोळी सूं मुंह म्हारो खारो नीं हुवै
पाकी री पिछाण करांवती बाई।
मीठी अर फीकी कुणसी होवै डोकी
पत्तां री लकीर सूं पढ़ांवती बाई।
खुळेड़ी मतीरड़ी रा बीज सगळा काढ़`र
मीठो-मीठो पाणी प्यांवती बाई।
बाजरी री कुत्तर सूं डंकोळी जद चुगतो
दोनां रो भेद बतांवती बाई।
बेरो कोनीं होंवतो कच्छी उलटी-सुलटी रोए
सूंई करगे कछड़ी पिरां`वती बाई।
चप्पलां रो पग जद भूलतो हो मैं
सागी सागण पग में पिरां`वती ही बाई।
खेत री राह में गोदी जद मांगतो
सारी दूर प`धियां चढ़ांवती बाई।
जद-जद करतो कछड़ी नै गंदी
तातै-तातै पाणी सूं धुंवांवती बाई।
बात-बात सट्टै रूसतो बीं सूं
कसूर म्हारो होंवतो मनांवती बाई।
लदग्या बै दिन अब पाछा कोनीं आवै
पाछा तो ले आंवती जे होंवती बाई।
कीं चितराम

बाबै नै पसीनै सूं
हळाडोब होयोड़ो देख
मेह
बरसणो सीख लियो।

बाबै री धोती रै पांयचै नै
पून
गीत सुणा`र घूमर घाली
इण निरत पर
आखी रोही री नाड़ हाली।
टाबरपणो

मींगणां
गुलाब-जामण होंवता
ठीकरी पतासा
अकडोडिया आम
अर मींगणी दाख।
म्हारी दुकान रो समान
म्हे ई बेचता
अर म्हे ई बपरांवता।
म्हे खांवता
अकडोडियै नै आम ज्यूं
मींगणी नै दाख ज्यूं।
म्हे सो कीं खांवता
पण
साची तो आ है
म्हे कीं कोनीं खांवता।

स्कूटर आळी कोई चीज
कोनीं होंवती बीं में
पण बा ई रेस
बै ई सवारी
अर बो ई ठाठ आंवतो
पीढ़ै नै चलांवतां।
छात
छात माखर
दीखै तारा
बरंगा में थोबी
फसरी है चांद री
मनै हांसी आई
देख`र चांद री आ गत
जे धरती चालती नईं उण रात
तो चांद री हो जांवती
राम-नात सत।


राजस्थानी री पै'ली वेब-बुक 'इक्कीस'
राजस्थानी रा चर्चित कथाकार सत्यनारायण सोनी री वेब-बुक 'इक्कीस' रो लोकार्पण श्री सुगन स्मृति साहित्य सम्मान समारोह मांय हुसी। आ राजस्थानी री पै'ली वेब-बुक है अर इणनै तैयार करी है 'जनवाणी' रा संपादक अजय कुमार सोनी।

इंटरनेट पर छाई राजस्थानी

राजस्थानी भाषा अर साहित्य किणी भी मामलै मांय लारै नीं है। आधुनिक संचार माध्यमां में राजस्थानी री दखल भरोसैजोग है। सूचना क्रांति रै इण जुग में इंटरनेट पर राजस्थानी री मोकळी सामग्री उपलब्ध है। 'गूगल' मांय सरच करतां मोकळी वेबसाइटां अर ब्लॉग मिल्या जका राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति रै प्रचार-प्रसार में आगीवांण है। आप भी देखो सा!

www.aapanorajasthan.org
www.janvaniparlika.blogspot.com
www.satyanarayansoni.blogspot.com
www.rajbijarnia.blogspot.com
www.dhartidhoranri.blog.co.in
www.eakataprakashan.blogspot.com
www.rajasthanirang.blogspot.com
www.prayas-sansthan.blogspot.com
www.marwad.org
www.maruwani.blogspot.com
www.dingalpingal.blogspot.com

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मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

विनोद स्वामी नै 'श्री सुगन साहित्य' सम्मान

राजस्थानी भाषा अर संस्कृति रै विकास खातर श्री सुगन स्मृति संस्थान कानीं सूं आयोजित 'श्री सुगन साहित्य' सम्मान इण बार परळीका रा युवा साहित्यकार विनोद स्वामी नै दियो जासी। राजस्थानी भाषा री संवैधानिक मान्यता खातर संघर्ष अर साहित्यिक सेवा रै विनोद स्वामी नै १३ दिसम्बर नै सूरतगढ में संस्थान रै वार्षिक समारोह मांय पुरस्कार दिरीजैला।

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ओम पुरोहित 'कागद' री कवितावां.....

मां-१


घर मांय बी
निरवाळौ घर
बसायां राखै
म्हारी मा।

दमै सूं
उचाट होयोड़ी
नींद सूं उठ'र
देर रात
ताणी
सांवटती रे'वै
आपरी तार-तार होयोड़ी
सुहाग चूनड़ी।

बदळती रे'वै कागद
हरी काट लागियोड़ा
सुहाग कड़लां
रखड़ी-बोरियै-ठुस्सी री
पुड़ी रा
लगै-टगै हर रात।

मा-२

साठ साल पै'ली
आपरै दायजै मांय आई
संदूक नै
आपरी खाट तळै
राख'र सोवै मा।

रेजगारी राखै
तार-तार होयोड़ी सी
जूनी गोथळी मांय
अर फेर बीं नै
सावळ सांव
'र
राख देवै
जूनी संदूक मांय।

पोती-पोतां सागै
खेलतां-खेलतां
फुरसत मांय कणां ई
काढ'र देवै
आठ आन्ना
मीठी फांक

चूसण सारू।

मा-३
मुं अंधारै
भागफाटी उठ'र
पै'ली
खुद नहावै
फेर नुहावै
तीन बीसी बर
जूनै
पीतळ रै ठाकुर जी नै
जकै रा नैण-नक्स
दुड़ गिया
मा रै हाथां
नहावंता-नहावंता।

मोतिया उतरयोड़ी
आंख रै सारै ल्या

ठाकुर जी रो
मुंडौ ढूंढ'र
लगावै भोग
अर फेर
सगळां नै बांटै प्रसाद
जीत मांय हांफ्योड़ी सी।

मा- ४

टाबरां मांय टाबर
बडेरां मांय बडेरी
हुवै मा।

टाबरां मांय
कदै'ई
बडेरी
नीं हुवै मा।
पण
हर घर मांय
जरुर हुवै मा
रसगुल्लै मांय
रस री भांत।


एक निजर ओम पुरोहित कागद

जलम- ५ जुलाई १९५७, केसरीसिंह (श्रीगंगानगर)
भणाई- एम.ए. (इतिहास), बी.एड. अर राजस्थानी विशारद
छप्योड़ी
पोथ्यां- हिन्दी :- धूप क्यों छेड़ती है (कविता संग्रह), मीठे बोलों की शब्दपरी (बाल कविता संग्रह), आदमी नहीं है (विता संग्रह), मरूधरा (सम्पादित विविधा), जंगल मत काटो (बाल नाटक), रंगो की दुनिया (बाल विविधा), सीता नहीं मानी (बाल कहानी), थिरकती है तृष्णा (कविता संग्रह)
राजस्थानी :- अ
न्तस री बळत (कविता संग्रै), कुचरणी (कविता संग्रै), सबद गळगळा (कविता संग्रै), बात तो ही, कुचरण्यां।
पुरस्कार अर सनमान- राजस्थान साहित्य अकादमी रो 'आदमी नहीं है' माथै 'सुधीन्द्र पुरस्कार', राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर कानीं सूं 'बात तो ही' पर काव्य विधा रो गणेशी लाल व्यास पुरस्कार, भारतीय कला साहित्य परिषद, भादरा रो कवि गोपी कृष्ण 'दादा' राजस्थानी पुरस्कार, जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ कानीं सूं केई बार सम्मानित, सरस्वती साहित्यिक संस्था (परलीका) कानीं सूं सम्मानित।
सम्प्रति- शिक्षा विभाग, राजस्थान मांय चित्रकला अध्यापक।
ठावौ ठिकाणौ- २४, दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम ३३५५१२
कानाबाती- ०१५५२-२६८८६३
समूठ- ९४१४३-८०५७१

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