पण आभै में गूंजता रैसी म्हारा गीत.....................
जन-जन रा कवि, सबद रिसी, राजस्थानी माटी रा साचा गायक, महान कवि, पद्मश्री कन्हैया लाल सेठिया नीं रैया। आज तारीख ११ नवंबर २००८ नै दिनूगै करीब ६ बजे कोलकाता में आपरै निवास पर वां छेकड़ली सांस ली। वां रो एक दूहो है :-
''बुझसी धूणी देह री, अबै हुवै प्रतीत।
पण आभै में गूंजता रैसी म्हारा गीत।।"
जद तांई आ धरती रैसी, वां रा गीत गूंजता रैसी। सेठिया जी फगत राजस्थानी रा ई नीं, भारतीय साहित्य रा लूंठा कवि हा। राजस्थानी कविता रै मार्फत राजस्थान री संस्कृति अर प्रकृति री खासियतां दुनिया रै सांमी राखण में कामयाब हुया। सगळां सूं बेसी पढ़ीजण-सुणीजण वाळा कवि हा बै। 'धरती धोरां री', पातळ अर पीथल', 'जलमभोम', 'कुण जमीन रो 'धणी' जिसी कवितावां आज भी लोकगीतां री भांत गायी जावै। राजस्थानी में वां १४ किताबां लिखी जिणमें 'रमणियां रा सोरठा', 'गळगचिया', 'मींझर', 'मायड़ रो हेलो', 'लीकलकोळिया', 'लीलटांस' अर 'हेमाणी' आद खास है। मायड़ भासा राजस्थानी री मानता वास्तै बै आखै जीवण संघर्ष करता रैया। मायड़ भासा रै सम्मान में वां रो दूहो है :-,
''मायड़ भासा बोलतां, जिण नै आवै लाज।
इसै कपूतां सूं दुखी, आखो देस-समाज।।"
हिन्दी, अंग्रेजी अर उर्दू में भी वां री मोकळी पोथ्यां छपी है। सेठिया जी नै सरधांजली देवतां थकां श्री रामस्वरूप किसान कैयौ है,
''आज आपां राजस्थान री धरती पर साहित्य री तलवार सूं लड़ण आळो भोत बड़ो जोधो खो दियो।" किसान जी रो दूहो है :-
''सायर सुरग सिधारियो, रोया भर-भर बांथ।
कविता-कड़बी काटतो, धरग्यो दांती पांथ।।"
जनवाणी परिवार कानीं सूं परलीका में सरधांजली सभा १३ नवंबर नै राखी है। पधारज्यो सा!
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